गुरुवार, 15 सितंबर 2016

महिला क्रिकेट टीम को बराबरी का दर्जा क्यों नही  ?

महजबी
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महिला क्रिकेट टीम को! पुरुषों की क्रिकेट टीम के बराबर दर्ज़ा क्यों नहीं मिलता? मिडिया वाले अखबार वाले उन्हें क्यों उपेक्षित रखते हैं? क्या इसीलिये की मिडिया अब कॉर्पोरेट पूंजीवादी व्यवस्था का गुलाम है.. अस्ल में महिलाएं ही खेल रही हैं.. पुरुषों वाला क्रिकेट तो व्यापार बन गया है.. कॉर्पोरेट, पूंजीवाद का हिस्सा.. और उन मैचों में औरतों को लाकर नंगा नचाया जा रहा है ..वो नाचती हैं तभी तो पुरुष खिलाड़ी चौके छकै लगाते हैं।
       यानी ये पूंजीवादी व्यवस्था एक नए शिरे से सामंती व्यवस्था को वापस बुला रही है।पहले औरतें दरबारों और कोठो पर नाचती थी.. अब फिल्मों के आइटम सॉंग, विज्ञापन, और पुरुषों के क्रिकेट में नाचती हैं, यही है औरतों की आधुनिकता, इकनॉमिक्ल पावर, आजादी, कुछ नहीं बदला औरतों के संदर्भ में अभी भी औरत मध्यकालीन विचारों को ढो रही है.. सामंती व्यवस्था का शिकार है.. शिकार और शौषण की शक्लें बदल गई हैं.. वो अब स्टाइलिश लुक में औरतों को सता रहे हैं.. और कुछ औरतें अपने आप को उन भूमंडलीकरण, सामंती सोच, पूंजीवादी व्यवस्था, का हिस्सा समझ रही हैं.. बना रही हैं.. और शालीनता के दायरे में रहने वाली औरत को बेवकूफ समझती हैं.. आज की डेट में सिंपल और सादगी में औरत को सब, अनपढ़ समझते हैं, इग्नोर करते हैं, स्टाइल में रहने वाली औरत चाहे कितनी भी जाहिल और बेवकूफ क्यों न हो.. उसकी सब इज्जत करते हैं। सानिया मिर्जा और सानिया नेहवाल ने भारत देश का नाम कितना ऊंचा किया है.. लेकिन कौन तारीफ करता है उनकी.. कौन उनके आगे पिछे घूमता है.. अभी बिपाशा बसु और मल्लिका शेरावत आ जाए तो बुड्ढे भी दिल थाम लेते हैं.. औरतें क्रिकेट में ही नहीं बहुत सारे खेलों में भारत का नाम रौशन कर रही हैं.. पी. टी ऊषा, और मेरी कॉम.. भी उधारण हैं.. और पुरुषों वाले क्रिकेट के निचे तो पुरुषों के ही दूसरे खेल.. फुटबॉल, हॉकी, बिस्किट बॉल, टैबल टेनिस, चैस, दौड़, तैराकी, कुश्ती, उपेक्षित हैं.. फिर महिला क्रिकेट की कद्र कौन करे.. इस पूंजीवादी, कॉर्पोरेट पुरुष क्रिकेट के चलते तो सभी खेल और खिलाडी़ उपेक्षित हैं ।पुरुष क्रिकेट में महिलाओं और पुरुषों को अलग अलग दर्जा दिया है.. पुरुष सेलिब्रिटीज हैं.. और औरतें सिर्फ नचनियां।

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