गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

तालीमी मरकज़ के शिक्षा स्वयं सेवक को सवैतनिक दो वर्षीय प्रशिक्षण दिया जाए-मोहम्मद कमरे आलम

1.शिक्षा स्वयं सेवी को मानदेय नही नियत वेतन कम से कम@18000/ रुपया दिया जाए और साथ ही समय पर देने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाय।

2.शिक्षको  की तरह वर्ष में 16 आकस्मिक अवकाश ,चिकित्सा अवकाश और महिला शिक्षा स्वयं सेवी को मातृत्व अवकाश और पुरुष को पितृत्तो अवकाश की सुविधा प्रदान की जाय।

3. सरकार टोला सेवक एंव तालिमी मरकज़ के लिए सेवा शर्त एवं नियमावली तैयार करें ,एंव सेवा पुस्तिका का संधारण किया जाय ।

4. नियोजित शिक्षकों की तरह सवैतनीक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान से दो वर्षीय प्रशिक्षण दिलाया जाय।

5.उत्थान केंद्र और तालीमी मरकज़ को उस वक्त तक विद्यालय में ही संचालित किया जाए जब तक इन केंद्रों को विद्यालयों के रूप में स्थापित नहीं कर दिया जाता है क्योंकि किसी के दरवाज़े पर बीना संसाधन के संचालित किया जाना मुमकिन नहीं है ।

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

मुस्तकीम सिद्दीकी का पत्र रवीश कुमार(एन डी टीवी) के नाम

प्रिय रविश जी |

( यह हम जैसे आम आदमी का आक्रोश है , हमारे इस आक्रोश और क्रोध को न तो मीडिया दबा सकती है और न ही प्रशासन , सर मिन्हाज़ अंसारी की क्रूर हत्या एक ज्वाला बन कर उठ रही है , ऐसा ज्वाला जो देश में एक बदलाव ला सकती है , जो देश में एक क्रांती पैदा कर सकती ,जो देश में हलचल पैदा कर सकती है | सर हम आपको आपका  पक्षपात बता रहे हैं , सर हम आपको आपकी हिंदुत्व एजेंडा को उजागर कर रहे हैं , सर हम आपका मुस्लिम विरोधी चरित्र उजागर कर रहे है | और यह सब इसलिए कर रहे हैं के आप रोहित विमुला की हत्या को हत्या मानते हैं , गुजरात में दलितों की पिटाई को अत्याचार मानते हैं , दिल्ली की सड़कों पर बलात्कार को बलात्कार मानते हैं लेकिन जब यही घटना मुसलामानों के साथ होता है तब आप के स्क्रीन की छमता या तो घट जाती है या फिर आप अपने ध्रुव पर आ जाते हैं | )

रविश सर जी कल मैंने आपके मोबाइल नंबर पर शाम लगभग 6 बजे कॉल किया था , आपने कॉल रिसीव नही की , यह सोंचकर के किसी आम आदमी का कॉल होगा या यह सोंच कर के कोई आम बात होगी , सर दोनों बातें सत्य है , मैं एक आम आदमी हूँ और बातें जो करनी थी वह भी आम थी | सर आम आदमी इसलिए के आप मुझे नहीं जानते हैं और इसलिए भी के आप के जानने वाले भी मुझे नही जानते | सर बातें आम इसलिए थी के एक २२ वर्षीय मुस्लिम लड़का मिन्हाज़ अंसारी को झारखण्ड की पुलिस अपने सरकार के चहितों की मदद से थाने में बहुत ही क्रूरता एवं दरिंदगी से पिट पिट कर जान मार देता है  और आम इसलिए भी के गौरक्षों को खुश करने के लिए मारा जाता है और मुस्लिमों को भयभीत करने के लिए भी | सर थाने में क्रूरता एवं दरिंदगी से पिट पिट कर जान मारने को मैं आम बात इस लिए कह रहा हूँ के मुसलमानों को इस तरह मारना हमारे देश में आम बात हो चुकी है | सर जी हमने गौरक्षों जैसा शब्द का प्रयोग क्रोध में आकर किया है चुनके होस व् हवास में हम इसे गौआतंकी कहते हैं | क्रोध में कुछ बातें गलती से निकल जाती है और सुनने वाला समझ जाता है के यह बात गुस्से में बोली जा रही है | दुसरी बातें इस पत्र में, मैं की जगह हम शब्द का प्रयोग करने का अर्थ  यह है के सिर्फ मैं नही चाहता बलके देश का हर शांती पसंद व्यक्ती मेरी तरह चाहता है |

अब आपसे मैं कुछ कहना चाहता हूँ , आप से एक आग्रह करना चाहता हूँ उम्मीद है के आप हमारी बातों को ध्यान से सुनेगें , और हम जैसे आम आदमी की खाहिश भी पुरी करेंगे , सर आप नही भी करेंगे तो हम कुछ नही कर सकते बस आपसे एक उमीद थी के आप करेंगें | आपसे उमीद करने के कुछ ख़ास कारण है चुनके आपसे हमारा एक रिश्ता है , आपसे हमारा एक संबंध है यह जरुरी नहीं के खून का रिश्ता ही एक रिश्ता होता है और यह भी जरुरी नहीं है के निजी संबंध से ही एक संबंध होता है | और हाँ अब बात खून पर आ चुकी है तो मैं चाहता हूँ के एक दिन के लिए आप अपना प्राइम टाइम वाला टीवी स्क्रीन रेड कर दें , सर उसी तरह जैसे आपने एक दिन ब्लैक किया था | सर फर्क सिर्फ इतना हो के जब आपने स्क्रीन ब्लैक किया था तो रंग से ब्लैक हुआ था, लेकिन जब रेड करें तो खून से , खून मैं अपना और अपने बेटे का देने को तैयार हूँ | सर अपना और अपने बेटे का इसलिए के अखलाक और मिन्हाज़ का खून मैं नही दे सकता चुनके अखलाक और मिन्हाज़ का खून मैं नही ला सकता | सर अखलाक और मिन्हाज़ के नाम पर आपको मेरी तरह करोड़ों लोग भी खून देने को तैयार हो जायेंगे, आपकी टीवी स्क्रीन खून से लाल हो जायेगी , सर इससे आपका कुछ नुक्सान नही होगा लेकिन हमारा फ़ायदा हो जाएगा इसलिए के आपने जब स्क्रीन ब्लैक किया था तो यह राष्ट्रीय घटना की तरह देखा गया था और आम लोगों पर अच्छा ख़ासा असर पडा था , सर जब आप खून से रेड करेंगे तो आपके स्क्रीन पर खून जम जाएगा , मैं जानता हूँ के जिस दिन आपके टीवी स्क्रीन पर जमा हुआ खून देश देखेगा तो देश में कोई तीसरा अखलाक या दुसरा मिन्हाज़ जैसा घटना नही होगा |
सर हम यह भी जानते हैं के हमारी बातों पर आप अपने टीवी स्क्रीन को रेड नही करेंगे चुनके आपके कुछ प्रोटोकॉल भी होंगे , आप पर कुछ दबाव भी होंगे , आप पर कुछ अलग आदेश भी होंगे और सबसे बड़ी बात यह है के हम आम आदमी हैं , आम आदमी के साथ मुसलमान हैं और झारखण्ड में है जहाँ बीजेपी की सरकार हैं | अगर ऐसा है तो आप प्राइम टाइम वाला टीवी स्क्रीन को खून से रेड मत कीजिये बस प्राइम टाइम में इस पत्र को पढ़ ही दीजिये या इस पर एक खबर तो चला ही दीजिये | सर हम आपसे आख़री आग्रह यह करेंगे के अगर यह सब नही कर सकते हैं तो आप अपने पत्रकार को २२ अक्टूबर को जामताड़ा ही भेज दीजिये , उस दिन आप चाहे तो लाइव भी देख सकते हैं के लोगों में कितना आक्रोश है , लोगों में कितना क्रोध है , लोगों में कितना गम है | आप खुद जान जायेंगे के यह लोग कौन हैं जिसमे आक्रोश है , इतना क्रोध है और गम भी , यह लोग सिर्फ मुसलमान नही हैं , इसमें आधे से अधिक आपको हिन्दू मिलेंगे, सर इसको कोई पकड़ कर नही ला रहा है , इसे कोई पैसे देकर नही ला रहा है , इसे कोई लालच देकर नही ला रहा है , इसे कोई डरा और धमका कर भी नही ला रहा है | 

यह आक्रोश , क्रोध और गम सिर्फ इसलिए नही है के एक मुसलमान मरा , इस आक्रोश के  कई कारन है , पहला सबसे बड़ा कारन मोबाइल पर गौमांस का फोटो रखने पर एक २२ वर्ष के लड़के को क्रूरता , दरिंदगी एवं अमानवीय तरीके से पिट पिट कर थाने में जान मार दिया जाता है  , दुसरा मुख्य कारण थाने में पिट पिट कर पुलिस और आरएसएस के कार्यकर्त्ता मिल कर मारते हैं , तीसरा मुख्य कारण हत्यारे पुलिस और आरएसएस कार्यकर्ता या किसी पर भी हत्या का केस दर्ज नहीं किया जाता है , चौथा मुख्य कारण पुलिस पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट से छेड़ छाड़ का प्रयास करती है , पांचवा मुख्य कारन पुलिस द्वारा क्रूरता , दरिंदगी एवं अमानवीय तरीके से पिट पिट कर जान मारने पर कोई प्राइम टाइम पर डिबेट नही होता है , किसी न्यूज़ चैनल पर इसे एक दिन की भी कवरेज नही मिलती है , किसी टीवी चैनल पर इसकी एक्स्क्लुसिंभ रिपोर्टिंग नही होती है , सर हम यह चैनल वाली बात उस चैनल की तरफ इशारा कर रहे हैं जो सीना बोरा और इन्द्रनी मुख़र्जी के मामले में हफ़्तों तक डिबेट या एक्सक्लूसिव रिपोर्टिंग करती थी , यह कैसा मीडिया है , यह कैसा पत्रकारिता है , यह कैसा लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है के इस अमानवीय घटना पर चुप , खामोश और मौन है ?
सर हमें पता है के आप अपने पत्रकार को भी कवरेज के लिए नही भेजेंगे , आप इस पर कोई एक्सक्लूसिव रिपोर्टिंग भी नही करेंगे , आप लाइव तो दूर की बात एक स्क्रॉलिंग में भी जगह नही देंगे चुनके आप इस मुद्दे पर गंभीर नही हैं , चुनके आप इसे एक गरीब की हत्या मानते हैं , चुनके आप इसे आम आदमी की हत्या मानते  हैं , और आप लोगों को गरीब और आम आदमी की चिंता नही है , चुनके अब आप पत्रकारिता से ज्यादा व्यक्तित्व का ध्यान रखते हैं , आप इमानदारी से ज्यादा रसुख का ख्याल रखते हैं , आप पेशा से ज्यादा पैसा का ध्यान रखते हैं | आपको हमारी बाते चुभ रही होगी , हमारा अंदाज़ आपको टिस पहुंचा रही होगी , हमारा पत्र आपको दुखी कर रहा होगा लेकिन सर सच कह रहा हूँ अगर आप मिन्हाज़ अंसारी की गिरफ्तारी से पहले , गिरफ्तारी के बाद और हत्या से पहले और हत्या के बाद की तस्वीर देख लें ,तो आप विचलित हो जायेंगे , फिर आप आम और खास में फर्क नही करेंगे , फिर आप अपने आप को रोक नही  पायेंगे |
सर यह हम जैसे आम आदमी का आक्रोश है , हमारे इस आक्रोश और क्रोध को न तो मीडिया दबा सकती है और न ही प्रशासन , सर मिन्हाज़ अंसारी की क्रूर हत्या एक ज्वाला बन कर उठ रही है , ऐसा ज्वाला जो देश में एक बदलाव ला सकती है , जो देश में एक क्रांती पैदा कर सकती ,जो देश में हलचल पैदा कर सकती है | सर हम आपको आपका  पक्षपात बता रहे हैं , सर हम आपको आपकी हिंदुत्व एजेंडा को उजागर कर रहे हैं , सर हम आपका मुस्लिम विरोधी चरित्र उजागर कर रहे है | और यह सब इसलिए कर रहे हैं के आप रोहित विमुला की हत्या को हत्या मानते हैं , गुजरात में दलितों की पिटाई को अत्याचार मानते हैं , दिल्ली की सड़कों पर बलात्कार को बलात्कार मानते हैं लेकिन जब यही घटना मुसलामानों के साथ होता है तब आप के स्क्रीन की छमता या तो घट जाती है या फिर आप अपने ध्रुव पर आ जाते हैं |

सर मिन्हाज़ अंसारी की हत्या ने प्रशासन और मीडिया की मानवता की पोल खोल कर रख दी है , सर मानवता की थर्मामीटर ने मीडिया को उसकी छवी बता दी है , सर चौथा स्तंभ अपनी शक्ती खो चूका है और अब किसी के सहारे पर खड़ा हुआ  है , एक समय था जब लोग मीडिया का सहारा चाहते थे लेकिन अब मीडिया किसी का सहारा चाहता है | सहारा पूंजीपतियों का , सहारा फासीवादियों का , सहारा एक ख़ास वर्ग का |

सर अब मैं आपको ज्यादा कष्ट नही दूंगा , सर अब मैं आपको ज्यादा परेशान नही करूँगा, सर अब मैं आपको अधिक तकलीफ नही दूंगा |

सर यह एक बिहारी का पत्र बिहारी के नाम है , यह एक मजलूम की तरफ से हक की आवाज़ उठाने वालों के नाम है , यह सत्य को दबाने वालों के विरुद्ध एक हुंकार है इस पत्र में मैंने आपकी आलोचना की है जो सत्य पर आधारित है , आलोचना करना हमारा लोकतान्त्रिक अधिकार है | अत : अंत में केवल इतना ही कहना है के आप हमारी आवाज़ को न दबाये |

धन्यवाद

मुस्तकीम सिद्दीकी ( Mustaqim Siddiqui )

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

आवामी लोग-ज़ाती ज़िन्दगी

अज़ीज़ बरनी
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मैं खुश हूँ तो आप मेरे साथ हैं मैं ग़मज़दा हूँ तो आप मेरे साथ हैं ये निजी ख़त उनके नाम था जो मेरे अपने हैं या अपने बन सकते हैं।मेरे ज़िन्दगी के नदिबो फ़र्ज़ उनके सामने ना रखें वो मेरी ज़िंदगी के पेचों ख़म से नावाकिफ़ रहें मेरे दुःख दर्द का उन्हें इल्म ना मेरी खुशियों में शामिल नहीं फिर ये रिश्ता कैसा जो मैं इनके साथ क़ायम करने जा रहा हूँ उनका दर्द मेरा दर्द इनकी ख़ुशी मेरी ख़ुशी है।वो परेशान हों तो परेशान हैं वो ग़मज़दा हैं तो मैं अफ़सुर्दा हूँ।मेरा एक छोटा परिवार है जिस मे मैंने जन्म लिया उन्होंने फ़र्ज़ अदा किया और मैं एक नए परिवार का सरबराह बनाये ये भी मेरा छोटा परिवार है।जिसमे मेरी शरीके सफर औलादें हैं मैं कर चुका उनके लिए जो करना है और जो करना ज़रूरी है वो अभी करूँगा बेगम के लिए जिसमें मेरी पत्नी ओलादें हैं मैं कर चुका उनके लिए जो करना है और जो करना ज़रूरी है वो भी करूँगा बेगम के लिए अभी कुछ फ़र्ज़ मेरी क़ौम और मुल्क के तई, अभी कुछ साथ ऊपर जाना नही ये सिक्का वहाँ नही चलता सिर्फ आमलनामा चलता है वहाँ ये डर नही होता की आपने अपने मुतालिगीन को कितनी आराम वो आराइश की या शहाना ज़िन्दगी की फ़र्ज़ अदा किया कि नही अल्लाह की नेमत का जाएज़ इस्तेमाल किया या नाजायज़ ये मेरे आमालनामे मे डार्क होगा।कुछ लेकर गया नही था कुछ लेकर जाऊंगा नही जो रह गया उसका हिसाब तो मुझे ही देना है।अब वो मेरे आँख के आंसू हों तिजोरी मे चाँदी के टुकड़े में खुश हूँ या ग़मज़दा अगर हैसियत आवामी है तो मुझ से वाबस्ता हर मेरे जिस्म का हिस्सा नहीं।मेरी तहरीर के वारिस ये जहाँ खून पसीना बहाना परे और मेरे विरासत के अमीन ।वो जिनके पास मेरी तहरीक को ज़िंदा रखने का वक़्त ना हो अगर ऐसा हो तो अपने हक़ का  ज़िम्मेदार ,व और मेरे हक़ की ज़िम्मेदार क़ौम ।क़ुरैश और अंसार के दरम्यान एक रिश्ता कायम किया था रसूलुल्लाह ने वो नज़ीर है क़ौम के लिए मैं तो उनका अदना सा ग़ुलाम सीरते रसूल से कुछ लिया और अपनी ज़िन्दगी में कुछ उतार लिया तो ये मेरी खुशनसीबी ।ख़तम हो जाने दीजिए मेरे पास जो है अपने वासएल से जो कर सकता हूँ फिर आगे आप के दरवाज़े पर, यक़ीन है आप मुझे नाउम्मीद न करेंगे।एक इंक़लाब बरपा करना है मुझे खाली बातों से नही होगा जान व माल हथेली पर रख कर चलना होगाजिस के पास जो ज़रूरियात के अलावा साथ लेकर चलना होगा और जिस के पास सिर्फ आँसू है खुदा की क़समवो चले अपने आँसू की सौग़ात लेकर मैं इस सरमाये से मैं उस की आँख में आँसू लाने वाले की दुनिया इन्हीं आँसुओं में ग़र्क़ कर दूँगा।
काम मुश्किल है मगर नामुमकिन नहीं ये तहरीर के लिए है।इलियास साहब रहबरी के लिए बराबर राब्ते में हैं।क़ौम के हवाले से बड़ा तजुर्बा है इनके पास,थोड़ा बहुत मैं भी जानता हूँ हम उस समय नाकाम हो जाते हैं जब उम्मीदें पलटती हैं मेरा काम है पैग़ाम ए हक़ देना, राहे खुदा में मज़्लूमीन के लिए जंग लड़ना इसका अजर तो खुदा देगा अब मैं मज़्लूमीन से ये मुतालबा भी करूँ की वो गुजरात दें मुझे सराहें।ये मेरा मुतालबा नही कोई एक काम का मुतालबा दो जगह से मांगता है क्या ? अब रहा सवाल नौजवान नस्ल को तहरीक से जोड़ने का तो ये फ़र्ज़ है मेरा, कि उनहोने आज़ाद हिंदुस्तान में आँखें खोलि हैं वो हमेशा आज़ाद फ़िज़ाओं में साँस लें और इनकी आने वाली नसलें भी ।मैं ज़रा सियासत को समझाता हूँ 70 साल पहले पाकिस्तान बंटा ताकि 100 साल तक पाकिस्तान से जंग की जा सके,दहशतगर्दी का तूफान खड़ा हो सके,मुसलमानों को हस्सासे गुनाह दिलाया जा सके, इनकी तरक़्क़ी के राह में कांटें बिछाई जा सके,उन्हें दो नम्बरी होने का अहसास दिलाया जा सके,अगर वक़्त रहते उन्हें आगाह कर दूँ तो बुरा क्या है अगर हालात पैदा न हुए तो खुशनसीबी इनकी और बदकिस्मती, इनकी राहों में कांटे बिछाए तो वो मायूस ना होंगे काँटों के दरमियान से राह बनाने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार होंगे।क्या मिलेगा मुझे इस जीद्दोजेहत से क्या छीनेगा मुझ से इस जिद्दोजहद से मैं कोई कारोबारी हूँ क्या धंधा कर रहा हूँ जो फायदा नुकसान का हिसाब लगाओं,मैं कोईनेता हूँ जो वोट पाने की राह हमवार करूँ,किसी सियासी पार्टी का ग़ुलाम हूँ,क्या जो उसका हक़ नमक अदा करूँ आज़ाद सहाफी हूँ आज़ादी का मतलब बताने आया हूँ चार साल की नज़रबंदी का हिसाब चुकता करने आया हूँ चार बार मौत के मुँह से वापस लौट अब जिनदगी का हक़ अदा करने आया हूँ मुझे डराओ मत यारो जो मौत से ना डरा अब ज़िन्दगी से क्या से क्या डर ।
मेरे सामने मुखल्फीनका एक हजूम है और मैं तनहा इम्दादे इलाहीके सहारे अब्राह के हाथियों के लश्कर का सामना करने आया हूँ। तुम देख रहे हो मेरे साथ इन कम उम्र मासूम बच्चों को मैं इनमे वो अबाबिलों का लश्कर देखने आया हूँ जिनका ज़िक्र क़ुरान ए करीम की सूरा फील में है बस मैं इनकी चोंच में वो कंकरियां दबाने आया हूँ जो जो ज़ुल्म के रास्ते पर चलने वाले हस्तियों का लश्कर है मैं उसे इनके सहारे छुपे हुए भूसे में बदलने आया हूँ हाँ मैं अज़ीज़ बरनी हूँ हथेली पर सरसों बनाने आया हूँ जिन्होंने होश उड़ाये हमारे अब मैं इनके ठिकाने लगाने आया हूँ।

अज़ीज़ बरनी

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

AAP K SAWAL MERE JAWAB AUR FUTURE PLAN-Aziz Burey

m har sawal ka jawab de sakta hun par khuda k liye mujhse wo sawal mat poochiye jis k jawab se mere aur aap k apne benaqab ho jayn jinhone apni taqat aur paise k bal par mujhe tanhaiyon k andhere m bhej diya wo phir mujhe Aap se cheen sakte hain m khofzada nahin hun pichle tajurbat se kuch seekhkar aage barhna chahta hun KUCH KARNA CHAHTA HUN AISA JO PEHLE KABHI NAHIN HUA SOCIAL NETWORKING SITES KO AAP K LIYE QOM K LIYE DUNIA KA SABSE BARHA MEDIA CENTER BANANA CHAHTA HUN YE HO GAYA TO PHIR EK NAYI TAREEKH NA HUA TO YE SUKOON JATE JATE QOM K LIYE KUCH KARNE KI KOSHISH KI JO M NA KAR WO MERI NAYI TEAM KAREGI
han mujhe har pal aapka intzar h ek team member ki shakl m aapki mukhtasar jankari k sath nam pata pine no taleem kahan k rehne wale hain kya karte hain is ttehreek k liye kya kar sakte hain aaghaz k liye mujhe aap se sirf 2 chezen chahiye aapka waqt jitni ho saken kitaben chahe ghar ghar jakar hasil karna parhe roz mujhse interacton aaj kya kiya kal kya karna h
Kya karenge ye sab bat meri nahin m allah k karam se ek shandarzindgi ji chuka aur aaj bhi pareshan haal nahin hun sawal qom ka h sawal islam k tehffuz ka h sawal begunahon ko jail se cburhane ka h sawal asl mujrimon ko jail ki salkhon tak pahunchane ka h sawal har bum dhamakey k peeche chipa sach samne lane ka h sawal dehshatgardi aur siyasat ka rishta samjhane ka h sawal kashmir ko bachane ka h sawal apni maaon betiyon behnon ko tahffuz dilane ka h sawal apne nojawanon ko dehshatgardi k ilzam se bachane ka h
Kys aaynge aap mere sath mujhe aapse jaN maal nahin chahiye aapka waqt aur jazbai easar o qurbani chahiye kya denge aap agar han to nikaliye waqt aur mujhse rabta qayam kijye pehli fursad m
.era imla theek nahin h mera jumla theek nahin h mera lehja theek nahin h jane deejye in baton ko m dharkte dil aur knpti ungliyon se apne jazbat aap tak pahuncha raha hun agar meri tehreer aap k dil m utar jati h to mera maqsad kamysb agar nahin to qeemti adabi saheefa bhi nskam
M kisi adabi seminar m mozu e adab par guftgoo nahin kar raha hun m maidane jang se bol raha hun jahan meri nihatti qom ko apni baqa k samna h aise m apni tehreer m lafzon ki khoobsoorti laun ys un k tahffuz ki laheamal banaun is meri tawajjeh khud k numaya hone par nahin qom k numaya hone par h meri aabroo jati h to jay meri qom ki aabru bach jay meri jan jati h to jay meri qom ko tahffuz mil jay bas yahi aakhri khwahish h khuda hafiz aapka aziz burney

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

मोदी और आर एस एस का छीपा एजेंडा

अज़ीज़ बरनी
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मोदी और आर एस एस का कोई छीपा एजेंडा नही है हमारी नज़र कमज़ोर है या याददाश्त कमज़ोर है ये शुतुरमुर्ग की तरह रात में गर्दन छीपा कर हम खतरे को देखना नही चाहते।1901 में बनी हिंदू महासभा काँग्रेस आज़ादी की जंग लड़ रही थी मै सियासी पार्टी काँग्रेस की बात नहीं कर रहा हूँ मैं उस काँग्रेस की बात कर रहा हूँ जो आज़ादी की जंग का प्लेटफॉर्म था जिस में मोहम्मद अली जिन्ना भी थे सरदार पटेल भी पंडित नेहरू भी मौलाना आजाद भी और सर्ब्राही महात्मा गांधी की,जब हिन्दू मुसलमान साथ थे और कंधे से कन्धा मिला कर जंग लड़ रहे थे देश को आज़ादी की ज़रूरत थी ।हिन्दू महासभा को आज़ादी से ज़्यादा हिन्दू मुस्लमान का दो टुकड़ों मे बंट जाना पसंद था ये हिन्दू गर्दी नही तो क्या था उसी दौड़ में हिन्दू महासभा के जरिए कानपुर की एक मस्जिद की दीवार तोड़ी गई हिन्दू गर्दी नही तो क्या थी हाल ही में कानपुर में बजरंग दल के कार्यकर्ताबम बनाते हुए मारे गए ये हिन्दु गर्दी नही तो क्या था ।यही आर एस एस का एजेंडा था यही आर एस एस का एजेंडा है और यही आर एस एस का एजेंडा रहेगा इसमें क्या छिपा है इतिहास उठा कर देखो मैं जो जो लिख रहा हूँ ये इतिहास का आईना है तुम देखते क्यों नहीं तुम्हें फ़िक्र है आर एस एस का छिपा एजेंडा क्या, कोई छिपा एजेंडा नही है आर एस एस का सब कुछ खुली किताब की तरह ज़ाहिर है ।
बस हमारा कोई एजेंडा नही है न छिपा न खुला कौन है मोदी क्या मोदी का कोई छिपा एजेंडा है क्या गुजरात आप को याद नहीं क्या ये मोदी का छिपा एजेंडा था जिस पर अमेरिका ने visa कैंसिल किया वाजपेयी समेत सभी पार्टियों के नेताओं ने खेद प्रकट किया था उच्चतम न्यायालय ने नीरो तक ने कहा आज तक मोदी ने गुजरात पर माफ़ी नही मांगी क्या छिपा था इसमें टोपी आर एस एस का पोशाक का हिस्सा है लेकिन मोदी ने रस्मी तौर पर भी मुस्लिम टोपी लगाने से इंकार कर दिया ये छिपा एजेंडा है क्या कश्मीर में जो रहा है ये छिपा एजेंडा है क्या सर्जिकल ऑपरेशन में क्या हो रहा है सब लिख रहे हैं ये छिपा एजेंडा है क्या मुरादाबाद में, जयपुर में, आंध्रा में, अजमेर में, महाराष्ट्र में, कर्नाटका में, मुज़फ्फर नगर में जो क़त्ले आम हुआ ये छिपा एजेंडा है क्या, करकरे ने मालेगांव की तफ्तीश में आर एस एस का जो चेहरा सामने रखा वो किसी से छिपी है क्या।स्वामी असीमानंद ने मक्का मस्जिद बम विस्फोट, दरगाह अजमेर शरीफ धमाका,समझौता एक्सप्रेस विस्फोट और
     malegaaon ka sach samne rakha majistrate k samne iqrare jurm kiya rss k kam karne musalmanon badnam karne aur dhamakey karne ki haqeeat bayan ki ye kisi se chipa h
Nahin nahin nahin
Sabkuch roze roshan ki tareh h kuch bhi chipa nahin h na kal na aaj na AANE WALE KAL KA MANSOOBA chipe hue hain shturmurg ban gaye hain gardan chipa li h hamne ret k andar kuch dekhna nahin chahte ham gumrahh kar rahe hain ham apni aane wali naslon ko ham unhen bstate kyon nahin k tum khud spna difa karo karne ka irada rakho zehni aur jismsni tor par in halat ka samna karne k liye tayyar raho hsm nakam ho chukey h tumhai hifazat m tumhen mara ja raha ma bap mmama mami k samne izzat looti ja rahi h mama mami ko qatl kiya ja raha h hamai zaban hakime waqt ki ghual h ham sadae haq bhi buland nahin kar sakte
Beete hue kal m vajpaee ne angrezon ki ghlami k parwane par dastkht kar diye the aaj hamne hakime waqt ki gulami k parwane par datkhat kar diye hain hamare jism ka libas hamari zahri shakhshiyat tumhari tumhari tarjumani karti h lekin hamari rooh hamari batni shakhshiyat aaqae waqt ki ghulami karti h ye h hsmars chipa agenda aur ye chipa rahe isliye ham rss k cipey agenge ki bat karte hain achchs kuch bat karte ham iski taeed kate hain par kya kafi h hhalst ka takaza h k hamen is se aagey barhna h aur hsm ishaalah barh kar rahenge ab hamara bhi agenda hoga chipa bhi kula bhi
Aur is agendey par kam jarii h social networking sites par open media jo sari haqeeqat samne rakhega siyasat aur dehshatgardi kya rishta h ye naqab karega haq aur insaf ki jang larhega Aur mera chipa agenda rss k chipe agendey ka jawab hoga zara intzar karo mujhe wapas lotne to do allah ne nayi zindgi di h to kuch naya aur bsrha kam bhi hoga---------

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

झारखण्ड में मरीजों को फर्श पर भोजन परोशने का ज़ेम्मेदार कौन ?

महज़बीं
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निचले तबक़े के आदमियों से दूर होती संवेदना बहुत चिंता का विषय है, दो तीन दिनों से झारखंड के एक सरकारी अस्पताल में, मरीज़ को फर्श पर भोजन परोसने जैसी संवेदनशील ख़बर, चर्चा में बहस का विषय है।

कौन कौन दोषी हो सकते हैं, इस घटना को अंजाम देने के लिए? सत्ता, पूंजीपति, व्यवस्था, अस्पताल की ऐडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट, इस घटना में सिर्फ आसमान में उड़ने वाले ही नहीं शामिल हैं, बल्कि ज़मीन से जुड़े लोग भी शामिल हैं, हम उन्हें अनदेखा कैसे कर सकते हैं? खाना परोसने वाला कोई पूंजीपति या राजनीतिज्ञ नहीं था, एक अदना सा कर्मचारी है, अस्पताल में डी ग्रेड कर्मचारियों की तनख़्वाह होती ही कितनी है, बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने मात्र ।  मतलब कि अस्पताल में जिस व्यक्ति ने निर्मम घटना को अंजाम दिया, वो एक आम आदमी है। बहुत भयावह स्थिति है, एक आम आदमी के भीतर से संवेदना, जिम्मेदारी का नष्ट हो जाना। फिर कटघरे में सिर्फ सत्तापक्ष और पूंजीवादी व्यवस्था ही क्यों?

साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, अक्सर अपनी रचनाओं के माध्यम से,  समाज के उच्चवर्गीय, मध्यवर्गीय लोगों में, संवेदनाओं के नष्ट होने की दुहाई देते रहते हैं, पूंजीपतियों और नेताओं के व्यवहार पर टिप्पणी करते रहते हैं, व्यवस्था का विरोध करते रहते हैं, आम आदमी की स्थितियों- प्रस्थितियों , मज़बूरीयों का वर्णन करते हैं, लेकिन आज आम आदमी की भी संवेदना नष्ट हो गई है, वो भी दोषियों की श्रेणी में खड़ा है, तो उसे कटघरे में क्यों नहीं खड़ा करना चाहिए?

इस घटना में अगर सत्ता, व्यवस्था, पूंजीपति, अस्पताल का ऐडमिनिस्ट्रेटिव, डिपार्टमेंट जितना दोषी है उतना ही दोषी वह आम आदमी कहलाने वाला कर्मचारी भी है। और कहीं न कहीं सोशल मीडिया और बिकी हुई मिडिया भी, जिसने तस्वीर खींच कर सोशल मीडिया पर साझा की, सबसे बड़ा  असंवेदनशील व्यक्ति तो वही है, जिसने तस्वीर खींच कर पूरे हिन्दुस्तान में संप्रेषित करने की जहमत की, लेकिन उस खाना परोसते हुए कर्मचारी का हाथ नहीं पकड़ा, उसके मुँह पर तमाचा नहीं मारा। इतनी ही संवेदना थी तो पहले उस मरीज़ को प्लेट में खाना मुहैया करवाता, अस्पताल वालों ने नहीं दिया तो, वही अपने केमरा चलाने से पहले, उस मरीज़ को सम्मान पूर्वक भोजन करा देता, उसके बाद मिडिया और सोशल मीडिया की रोटियां सेकने का इंतजाम करता।

मरीज़ कितना विवश था कि, उसने विरोध नहीं किया, खाना खा लिया फर्श से ही उठाकर। उसके परिवार वाले कहाँ थे? क्या वो घर से ज़रूरी वस्तुएं मरीज़ के लिए नहीं ला सकते थे? या फिर  इस घटना का दूसरा पहलू यह है कि, वो मरीज़ अकेला ही था अस्पताल में भर्ती, और उसके परिवार के सदस्य उसके साथ अस्पताल में रहने के लिए असमर्थ होंगे, किन्हीं कारणों से। कैसी - कैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है एक ग़रीब आदमी को। जिसकी ओर सत्ता का ध्यान कभी केंद्रित नहीं होता, वर्तमान सत्ता से क़ितनी उम्मीदें थीं जनता को, लेकिन क्या हुआ, सरकार ने अपने वादे पूरे किये? यह छोटी-छोटी बुनियादी ज़रूरतें तो पूरी की नहीं, और मेहंगी दँवाईयों की सब्सिडी भी ख़त्म कर दी।

बुलेट ट्रेन का ही तोहफा मिलेगा क्या इन पाँच सालों में? शिक्षा- स्वास्थ्य, बेरोजगारी, प्रदूषण, ग़रीबी जैसी समस्याओं पर वर्तमान सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता है? बीफ, कश्मीर, पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दे मिडिया में उछलते रहते हैं, सरकार न तो ग़रीब मज़दूर के बारे में सोच रही है, और न ही दलितों- मुसलमानों, स्त्रियों के बारे में कुछ कर रही है। फिर कौन खुश हैं, संतुष्ट हैं इस सरकार से। हक़ीक़त यह है कि न कोई खुश हैं, और न ही कोई सुरक्षित हैं।

पिछले साठ सालों में कॉग्रेस ने राज किया, उसने भी इस बुनियादी ढांचे में कोई सुधार नहीं किया, और आज विपक्ष में बैठकर चिल्ला रही है। और बीजेपी पिछले साठ सालों से विपक्ष में रहकर चिल्ला रही थी, आज सत्ता में है। यह हिन्दुस्तान की बहुत बदकिस्मती है कि, उसके पास बड़े राष्ट्रीय स्तर की दो पार्टियां हैं कॉग्रेस और बीजेपी, यही सत्तापक्ष और विपक्ष में रहती हैं, और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालती रहती हैं। और तीसरा विकल्प मज़बूत नहीं होता।

मेहजबीं

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

अज़ीज़ बर्नी का पैगाम वारिसैन तहरीक के नाम

ख़ुदा के लिए ना पढ़े वो जो इस तहरीक का हिस्सा नहीं हैं और ना बन सकते हैं क्यों कि आज का ये खत है सिर्फ उन्ही के नाम और किसी का खत पढा नही करते मुझ से वाबस्ता हर शख्स के लिए एक अच्छी खबर है कि मैं अब बिल्कुल भी बीमार नही हूं ज़ेहनी और जिस्मानी एतेबार से ठीक हूं लेकिन जाती ज़िन्दगी की तरफ से बिल्कुल भी ठीक नहीं हूं और ठीक हो पाउँगा उम्मीद भी नहीं है लिहाज़ा कम से कम वक़्क्त में अपनी ज़िंदगी का क़ौमी सरमाया, कलमी सरमाया तहरीर वो तक़रीर का सरमाया आपके सुपर्द कर जाना चाहता हूँ।

मेरी सोच मेरी फ़िक्र मेरे ग़म मेरे ज़ख्म मुझ पर जो हुए सितम जिनसे ये ज़माना है बे खबर आपके सुपर्द कर कर जाना चाहता हूं इसलिए कि मेरे बाद हक़ीक़त की संगलाख ज़मीन आप के पैरों को ज़ख्मी कर दे तो आप उनसे रिस्ते हुए  खून को ना देखें बेशुमार ज़ख्मो के बावजूद क़ौम के लिए मेरे जनून को देखने और बढ़ जाएं मंज़िल क़ी तरफ अम्बिया एकराम हों या बुज़र्गाने दीन या मज़्लूमीन किसी को ज़मीन परजन्नत ना मिली ज़ुल्मो सितम मिला तकलीफों का खज़ाना मिला मगर राहे हक़ से उनके क़दम हटे नही बुरा वक़्त आता है और चला जाता है अपनी यादे और बातें छोड़ जाता है हमें फिर याद आता है बुज़र्गाने दीन अख़लाक़ ए रसूल और नबियों की ज़िंदगी जो रहनुमाई कराती है हमारी हर क़दम पर बस पैगामे क़ुरान देखने सेररते रसूल देखें मैदाने कर्बला पर बहता हुआ खून देखें इस्लाम की खिदमत के लिए उनका जनून देखें रौशनी मिलेगी दर्द का एहसास मिटेगा ज़माने के ज़ुल्मो सितम का खोफ ना रहेगा एक बार बढ़ गए ज़ो क़दम जानिबे मंज़िल तो फिर कभी न रुकेंगे।
इस वक़्त बेपनाह दर्द में डुबा हुआ है मेरा क़लम पर लफ़्ज़ों को ट्रपने की इजाज़त नही है।मेरी तहरीर क़ो सिसकने की इजाज़त नही है मुस्कुराना मेरी तहरीर के एक एक लफ्ज़ को के यही तो शहादत का जाम है जिसने लिया वो अब्दी ज़िन्दगी किया मै बहुत खुश पुरउम्मीद और मुतमईन हूँ की इतने कम वक़्त मे आपका साथ मिला फिर एक बार कुछ कर गुजरने का हौसला मिला लिहाज़ा अब मैं लफ़्ज़ों से आगे बढ़कर मैदाने अम्ल में आना चाहता हूँ कौन क्या करेगा ये बताना चाहता हूँ आप बताने की ज़िम्मेदारी क़बूल कर सकते हैं फिर इस तहरीर को आगे बढ़ाए अगर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास भी है और जज़्बा भी मगर कुछ जाती मज़बूरियां हैं कुछ और भी ज़िम्मेदारियाँ हैं सोचेंगे मिल बैठकर बात करेंगे दीन और दुनिया को साथ लेकर चलेंगे फ़र्ज़ के हर तक़ाज़ा को साथ लेकर चलेंगे लिहाज़ा एक बार मिलना होगा ख्वाबों ख्यालों से हटकर हकीकत से दोचार होना होगा तब बनेगा रोड मैप और तक़सीम होगी ज़िम्मेदारियाँ हम साथ हैं इससे आगे बढ़ कर तय करना होगा साथीयों अब मैं सब कुछ आपके सुपुर्द कर आपको मैदाने अम्ल मे अपने से बहुत आगे देखना चाहता हूँ यही मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी कामयाबी होगी।
  

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