अज़ीज़ बरनी
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मैं खुश हूँ तो आप मेरे साथ हैं मैं ग़मज़दा हूँ तो आप मेरे साथ हैं ये निजी ख़त उनके नाम था जो मेरे अपने हैं या अपने बन सकते हैं।मेरे ज़िन्दगी के नदिबो फ़र्ज़ उनके सामने ना रखें वो मेरी ज़िंदगी के पेचों ख़म से नावाकिफ़ रहें मेरे दुःख दर्द का उन्हें इल्म ना मेरी खुशियों में शामिल नहीं फिर ये रिश्ता कैसा जो मैं इनके साथ क़ायम करने जा रहा हूँ उनका दर्द मेरा दर्द इनकी ख़ुशी मेरी ख़ुशी है।वो परेशान हों तो परेशान हैं वो ग़मज़दा हैं तो मैं अफ़सुर्दा हूँ।मेरा एक छोटा परिवार है जिस मे मैंने जन्म लिया उन्होंने फ़र्ज़ अदा किया और मैं एक नए परिवार का सरबराह बनाये ये भी मेरा छोटा परिवार है।जिसमे मेरी शरीके सफर औलादें हैं मैं कर चुका उनके लिए जो करना है और जो करना ज़रूरी है वो अभी करूँगा बेगम के लिए जिसमें मेरी पत्नी ओलादें हैं मैं कर चुका उनके लिए जो करना है और जो करना ज़रूरी है वो भी करूँगा बेगम के लिए अभी कुछ फ़र्ज़ मेरी क़ौम और मुल्क के तई, अभी कुछ साथ ऊपर जाना नही ये सिक्का वहाँ नही चलता सिर्फ आमलनामा चलता है वहाँ ये डर नही होता की आपने अपने मुतालिगीन को कितनी आराम वो आराइश की या शहाना ज़िन्दगी की फ़र्ज़ अदा किया कि नही अल्लाह की नेमत का जाएज़ इस्तेमाल किया या नाजायज़ ये मेरे आमालनामे मे डार्क होगा।कुछ लेकर गया नही था कुछ लेकर जाऊंगा नही जो रह गया उसका हिसाब तो मुझे ही देना है।अब वो मेरे आँख के आंसू हों तिजोरी मे चाँदी के टुकड़े में खुश हूँ या ग़मज़दा अगर हैसियत आवामी है तो मुझ से वाबस्ता हर मेरे जिस्म का हिस्सा नहीं।मेरी तहरीर के वारिस ये जहाँ खून पसीना बहाना परे और मेरे विरासत के अमीन ।वो जिनके पास मेरी तहरीक को ज़िंदा रखने का वक़्त ना हो अगर ऐसा हो तो अपने हक़ का ज़िम्मेदार ,व और मेरे हक़ की ज़िम्मेदार क़ौम ।क़ुरैश और अंसार के दरम्यान एक रिश्ता कायम किया था रसूलुल्लाह ने वो नज़ीर है क़ौम के लिए मैं तो उनका अदना सा ग़ुलाम सीरते रसूल से कुछ लिया और अपनी ज़िन्दगी में कुछ उतार लिया तो ये मेरी खुशनसीबी ।ख़तम हो जाने दीजिए मेरे पास जो है अपने वासएल से जो कर सकता हूँ फिर आगे आप के दरवाज़े पर, यक़ीन है आप मुझे नाउम्मीद न करेंगे।एक इंक़लाब बरपा करना है मुझे खाली बातों से नही होगा जान व माल हथेली पर रख कर चलना होगाजिस के पास जो ज़रूरियात के अलावा साथ लेकर चलना होगा और जिस के पास सिर्फ आँसू है खुदा की क़समवो चले अपने आँसू की सौग़ात लेकर मैं इस सरमाये से मैं उस की आँख में आँसू लाने वाले की दुनिया इन्हीं आँसुओं में ग़र्क़ कर दूँगा।
काम मुश्किल है मगर नामुमकिन नहीं ये तहरीर के लिए है।इलियास साहब रहबरी के लिए बराबर राब्ते में हैं।क़ौम के हवाले से बड़ा तजुर्बा है इनके पास,थोड़ा बहुत मैं भी जानता हूँ हम उस समय नाकाम हो जाते हैं जब उम्मीदें पलटती हैं मेरा काम है पैग़ाम ए हक़ देना, राहे खुदा में मज़्लूमीन के लिए जंग लड़ना इसका अजर तो खुदा देगा अब मैं मज़्लूमीन से ये मुतालबा भी करूँ की वो गुजरात दें मुझे सराहें।ये मेरा मुतालबा नही कोई एक काम का मुतालबा दो जगह से मांगता है क्या ? अब रहा सवाल नौजवान नस्ल को तहरीक से जोड़ने का तो ये फ़र्ज़ है मेरा, कि उनहोने आज़ाद हिंदुस्तान में आँखें खोलि हैं वो हमेशा आज़ाद फ़िज़ाओं में साँस लें और इनकी आने वाली नसलें भी ।मैं ज़रा सियासत को समझाता हूँ 70 साल पहले पाकिस्तान बंटा ताकि 100 साल तक पाकिस्तान से जंग की जा सके,दहशतगर्दी का तूफान खड़ा हो सके,मुसलमानों को हस्सासे गुनाह दिलाया जा सके, इनकी तरक़्क़ी के राह में कांटें बिछाई जा सके,उन्हें दो नम्बरी होने का अहसास दिलाया जा सके,अगर वक़्त रहते उन्हें आगाह कर दूँ तो बुरा क्या है अगर हालात पैदा न हुए तो खुशनसीबी इनकी और बदकिस्मती, इनकी राहों में कांटे बिछाए तो वो मायूस ना होंगे काँटों के दरमियान से राह बनाने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार होंगे।क्या मिलेगा मुझे इस जीद्दोजेहत से क्या छीनेगा मुझ से इस जिद्दोजहद से मैं कोई कारोबारी हूँ क्या धंधा कर रहा हूँ जो फायदा नुकसान का हिसाब लगाओं,मैं कोईनेता हूँ जो वोट पाने की राह हमवार करूँ,किसी सियासी पार्टी का ग़ुलाम हूँ,क्या जो उसका हक़ नमक अदा करूँ आज़ाद सहाफी हूँ आज़ादी का मतलब बताने आया हूँ चार साल की नज़रबंदी का हिसाब चुकता करने आया हूँ चार बार मौत के मुँह से वापस लौट अब जिनदगी का हक़ अदा करने आया हूँ मुझे डराओ मत यारो जो मौत से ना डरा अब ज़िन्दगी से क्या से क्या डर ।
मेरे सामने मुखल्फीनका एक हजूम है और मैं तनहा इम्दादे इलाहीके सहारे अब्राह के हाथियों के लश्कर का सामना करने आया हूँ। तुम देख रहे हो मेरे साथ इन कम उम्र मासूम बच्चों को मैं इनमे वो अबाबिलों का लश्कर देखने आया हूँ जिनका ज़िक्र क़ुरान ए करीम की सूरा फील में है बस मैं इनकी चोंच में वो कंकरियां दबाने आया हूँ जो जो ज़ुल्म के रास्ते पर चलने वाले हस्तियों का लश्कर है मैं उसे इनके सहारे छुपे हुए भूसे में बदलने आया हूँ हाँ मैं अज़ीज़ बरनी हूँ हथेली पर सरसों बनाने आया हूँ जिन्होंने होश उड़ाये हमारे अब मैं इनके ठिकाने लगाने आया हूँ।
अज़ीज़ बरनी
मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016
आवामी लोग-ज़ाती ज़िन्दगी
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