बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

अज़ीज़ बर्नी का पैगाम वारिसैन तहरीक के नाम

ख़ुदा के लिए ना पढ़े वो जो इस तहरीक का हिस्सा नहीं हैं और ना बन सकते हैं क्यों कि आज का ये खत है सिर्फ उन्ही के नाम और किसी का खत पढा नही करते मुझ से वाबस्ता हर शख्स के लिए एक अच्छी खबर है कि मैं अब बिल्कुल भी बीमार नही हूं ज़ेहनी और जिस्मानी एतेबार से ठीक हूं लेकिन जाती ज़िन्दगी की तरफ से बिल्कुल भी ठीक नहीं हूं और ठीक हो पाउँगा उम्मीद भी नहीं है लिहाज़ा कम से कम वक़्क्त में अपनी ज़िंदगी का क़ौमी सरमाया, कलमी सरमाया तहरीर वो तक़रीर का सरमाया आपके सुपर्द कर जाना चाहता हूँ।

मेरी सोच मेरी फ़िक्र मेरे ग़म मेरे ज़ख्म मुझ पर जो हुए सितम जिनसे ये ज़माना है बे खबर आपके सुपर्द कर कर जाना चाहता हूं इसलिए कि मेरे बाद हक़ीक़त की संगलाख ज़मीन आप के पैरों को ज़ख्मी कर दे तो आप उनसे रिस्ते हुए  खून को ना देखें बेशुमार ज़ख्मो के बावजूद क़ौम के लिए मेरे जनून को देखने और बढ़ जाएं मंज़िल क़ी तरफ अम्बिया एकराम हों या बुज़र्गाने दीन या मज़्लूमीन किसी को ज़मीन परजन्नत ना मिली ज़ुल्मो सितम मिला तकलीफों का खज़ाना मिला मगर राहे हक़ से उनके क़दम हटे नही बुरा वक़्त आता है और चला जाता है अपनी यादे और बातें छोड़ जाता है हमें फिर याद आता है बुज़र्गाने दीन अख़लाक़ ए रसूल और नबियों की ज़िंदगी जो रहनुमाई कराती है हमारी हर क़दम पर बस पैगामे क़ुरान देखने सेररते रसूल देखें मैदाने कर्बला पर बहता हुआ खून देखें इस्लाम की खिदमत के लिए उनका जनून देखें रौशनी मिलेगी दर्द का एहसास मिटेगा ज़माने के ज़ुल्मो सितम का खोफ ना रहेगा एक बार बढ़ गए ज़ो क़दम जानिबे मंज़िल तो फिर कभी न रुकेंगे।
इस वक़्त बेपनाह दर्द में डुबा हुआ है मेरा क़लम पर लफ़्ज़ों को ट्रपने की इजाज़त नही है।मेरी तहरीर क़ो सिसकने की इजाज़त नही है मुस्कुराना मेरी तहरीर के एक एक लफ्ज़ को के यही तो शहादत का जाम है जिसने लिया वो अब्दी ज़िन्दगी किया मै बहुत खुश पुरउम्मीद और मुतमईन हूँ की इतने कम वक़्त मे आपका साथ मिला फिर एक बार कुछ कर गुजरने का हौसला मिला लिहाज़ा अब मैं लफ़्ज़ों से आगे बढ़कर मैदाने अम्ल में आना चाहता हूँ कौन क्या करेगा ये बताना चाहता हूँ आप बताने की ज़िम्मेदारी क़बूल कर सकते हैं फिर इस तहरीर को आगे बढ़ाए अगर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास भी है और जज़्बा भी मगर कुछ जाती मज़बूरियां हैं कुछ और भी ज़िम्मेदारियाँ हैं सोचेंगे मिल बैठकर बात करेंगे दीन और दुनिया को साथ लेकर चलेंगे फ़र्ज़ के हर तक़ाज़ा को साथ लेकर चलेंगे लिहाज़ा एक बार मिलना होगा ख्वाबों ख्यालों से हटकर हकीकत से दोचार होना होगा तब बनेगा रोड मैप और तक़सीम होगी ज़िम्मेदारियाँ हम साथ हैं इससे आगे बढ़ कर तय करना होगा साथीयों अब मैं सब कुछ आपके सुपुर्द कर आपको मैदाने अम्ल मे अपने से बहुत आगे देखना चाहता हूँ यही मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी कामयाबी होगी।
  

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