शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

एन.जी.ओ.- कितना ख़्वाब कितनी हक़ीक़त

अज़ीज़ बर्नी
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दुनिया में हर बड़े काम की शुरूआत एक ख़्वाब से होती है, फिर उसे हक़ीक़त में बदलने की कोशिश की जाती है, कोशिश कामयाब हो जाय तो एक तारीख़ बन जाती है, नाकाम हो जाय तो आने वाली नस्लों के लिए तजुर्बा। ये कोशिश कामयाब होगी या नाकाम मैं इससे ज़्यादा कोशिश को जारी रखने में दिलचस्पी रखता हूँ,  अगर आप को याद हो तो मैंने 21 बरस पहले एक ख़्वाब देखा था,  उर्दू सहाफ़त के ज़रिए क़ौम के मसाइल पर काम करने का,  अख़बार को क़ौम की नुमाइंदगी और एक ताक़त बनाने का मेरा ये ख़्वाब हक़ीक़त में बदला या नहीं, आज़ादी के बाद क़ौम को ऐसा अख़बार मिला कि नहीं जो हुकूमतों पर असरअंदाज़ हो सके, ये आप सोचें, शायद किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद मिले, फिर एक ख़्वाब देख रहा हूँ पूरा हुआ तो एक और नई तारीख़,  क़ौम को मज़बूती,  नई नस्ल के बेहतर मुस्तक़बिल की उम्मीद, पूरा ना हुआ तो भी सुकून एक और अच्छा काम करने की कोशिश की,  अपने मुस्तकबिल की फ़िक्र नहीं, अल्लाह का बड़ा करम है, एक शानदार ज़िंदगी जी चुका और जी रहा हूँ,  मौत को सामने देख कर जीता हूँ। अपने लिए ख़ानए काबा से कफ़न ख़रीद चुका हूँ। अपनी तदफ़ीन के लिए अपनी पसंद की ज़मीन ख़रीद चुका हूँ, जो कर चुका वो एक तारीख़ है,  क़ौम ने जितनी इज़्ज़त और प्यार दिया ये बहुतों का ख़्वाब हो सकता है। सियासत में नहीं आना जो सियासत में हैं उन्हें क़ौम का मुस्तकबिल बनाने की कोशिश करते रहना है,  इस फ़ेहरिस्त में जो नाम हैं वो सब मेरी पसंद के एतबार से नहीं,  क़ौम की ज़रूरत के एतबार से हैं,  जिन से ज़ाती तौर पर नज़रियाती इख़्तेलाफ़ रहा है उन के नाम भी हैं और भी हो सकते हैं जो नए नाम सामने रखे इनमें पापुलर फ्रंट के मौलाना अबु बकर के ज़रिए बेशक केरला और तमिलनाडू की शानदार नुमाइंदगी हो सकती है।
अभी तक मैंने उन लोगों से राबिता नहीं किया है शायद उन लोगों को मालूम भी ना हो, आज से ये सिलसिला शुरू करने जा रहा हूँ, फ़ोन पर भी वक़्त लेकर इन सब से मिलने की  दरख़ास्त करके भी,  रहा सवाल इन सब के मुत्तहिद होने का ये कोई बड़ा मसला नहीं होना चाहिए, बेशक अलग अलग प्लेटफार्म या सियासी पार्टी में हैं पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ कहां हैं,  मौलाना बुख़ारी साहब और अबु आसिम आज़मी मुलायम सिंह के साथ हैं। मौलाना महमूद मदनी, मौलाना बदर उद्दीन अजमल अलग अलग पार्टी में सही पर आपस में भी अच्छे रिश्ते हैं और कांग्रेस से भी। ज़फ़र अली नक़वी, मौसम नूर, आफ़ताब एमएलए और ज़ाहिदा बेगम एमएलए कांग्रेस से ही हैं,  रहमान शरीफ़ भी कांग्रेस फ़ैमिली से हैं सिर्फ डाक्टर अय्यूब अंसारी एक अलग पार्टी के हैं,  पर उनका कोई नुमाइंदा पार्लियमेंट में नहीं है,  इसलिए उनका स्टैंड (Stand) क्या होगा नहीं मालूम पर रहेंगे तो सेकुलर इत्तेहाद के साथ ही। असद उद्दीन ओवैसी इत्तेहादुल मुस्लिमीन के लीडर हैं पर हैं तो कांग्रेस के साथ ही,  इनके अलावा मैंने मुलायम सिंह और मायावाती का नाम लिया, आपस में एक दूसरे के ख़िलाफ़ हैं पर दोनों ही सरकार बचाने के लिए कांग्रेस के साथ हैं, दोनों को ही हमारा एहसानमंद होना चाहिए, जब जो ताक़तवर बना, सरकार बनाई,  हमारे बल पर। अगर ये सब हमारी ताक़त का सहारा लेकर सरकार बचाने के लिए एक हो सकते हैं तो एक ऐसी सरकार बनाने के लिए एक प्लेटफार्म पर क्यों नहीं हो सकते जिस में हमारी भी हिस्सेदारी हो,  हम बाहर से किसी सियासतदाँ को ला नहीं रहे हैं जो इस वक़्त भी उनके साथ हैं, हाँ बस फ़र्क़ इतना है कि आज अपनी और उनकी जरूरतों के लिए साथ हैं और कल हम उन्हें क़ौम की जरूरतों के लिए एक देखना चाहते हैं।
अब रहा सवाल इस बात का कौन साथ आयेंगे और कौन नहीं आयेंगे अगर आप मुंतशिर हैं तो कोई आप के साथ नहीं आयेंगे, लेकिन जब आप सब मुत्तहिद होंगे तो आप के साथ आना उनकी मजबूरी होगी, चाहे वो मुलायम सिंह हों या माया वती या कोई और,  इनमें से कौन आप के वोट के बगै़र ताक़तवर हो सकता है, आप का वोट लेकर कांग्रेस के साथ जाना है तो हमारे बेगुनाह बच्चों को आज़ाद कराएं , सिर्फ अपने लिए हमारे वोट का सौदा ना करें, अगर कांग्रेस और बीजेपी को किनारे कर के सरकार बनाने का इरादा है तो आओ साथ हमारे, ये भी हमारे बगै़र नहीं हो सकता,  हालात कांग्रेस का साथ लेकर या कांग्रेस को साथ दे कर ही पैदा होते हैं तो भी हम रुकावट कहां हैं बस हम तो ये चाहते हैं हमारा वोट लो अगर हमारे एजेंडे पर,  हम ना मुस्लिम पार्टी बनाने की बात कर रहे हैं ना किसी की हिमायत या मुख़ालिफ़त की बात कर रहे हैं, आप लोग जो कर रहे हो, करो लेकिन हमें साथ लेकर करो, हमारे मसाएल के हल के साथ करो, जिसके भरोसे में हम आपको वोट देते हैं। ये क्या कि वोट हमारा राज तुम्हारा,  हम मारे जाएं, तुम ज़िम्मेदार लेकिन ना तुम आँसू पोंछने आओ, ना इंसाफ़ दिलाने।
ऊपर नामों के हवालों में शुऐब इक़बाल का ज़िक्र नहीं था वो भी दिल्ली स्टेट के डिप्टी स्पीकर कांग्रेस की मदद से रहे हैं,  हाँ यासीन मालिक की बात सब से अलग है। वो अभी तक सियासी नहीं हैं लेकिन कश्मीर के अवाम पर उनका गहरा असर है। वो आएं सियासत में,  कहें अपनी बात पार्लियमेंट में,  शायद मसले का हल निकलने की सूरत बने। इनके अलावा कुछ दीगर आईएएस, आईपीऐस और जज हज़रात के नाम भी सामने आए हैं। ये हमारा थिंक टैंक बनें, जब जो सियासत में आना चाहें उनका ख़ैर मक़दम हो या दीगर बड़े ओहदों पर इनकी तकर्रुरू हो, सब कुछ हो सकता है, अगर अपनी ताक़त पहचान लो और अगर बदक़िस्मती से बड़े लोगों की मजबूरियां उन्हें मुत्तहिद ना होने दें तो क़ौम मुत्तहिद होने के लिए तैय्यार रहे, कुछ और सोचा जाएगा, अगर बहुत मजबूरी हुई, मैं जानता हूँ इस वक़्त ये बातें अख़बार में नहीं लिख पा रहा हूँ इसलिए बड़े दायरे में नहीं पहुंच पा रही हैं लेकिन ये कमी आप पूरी कर सकते हैं। आपकी तजवीज़ मौलाना अरशद मदनी साहब के लिए भी है जिस पर तब्सिरा अभी नहीं लेकिन  जमीयत उल्माए हिंद के तमाम अफ़राद का तआवुन दरकार है चाहे उनका ताल्लुक किसी भी ग्रुप से क्यों न हो,  अभी मौलाना अरशद मदनी साहब के बारे में कुछ भी लिखना या कहना नहीं चाहता, वक्त आने पर सब कुछ आपके सामने रख दूँगा, फिर जो भी आपका फैसला होगा सर आँखों पर...........

मीडिया हाऊस प्लान

अज़ीज़ बर्नी
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मास्टरमाइंड (Master Mind) , ऐडिटर(Editor) , प्लानर (Planner), इक्ज़ीक्यूटर विथ क्रेडिबिलिटी (Executer With Credibility) , एबिलिटी (Ability), कमिट्मेंट (Commitment) ये हो सकता है वो पहला आदमी जो मीडिया हाऊस प्लान करे और उसमें ये सब ख़ूबियाँ हों,  इसके बाद जो एक शख़्स चाहिए वो भी तक़रीबन उस जैसा ही हो,  दरअसल उसका नेमुलबदल हो,  ताकि हर हाल में सिस्टम काम करता रहे। अब मैं 2 तरीक़े आपके सामने रखता हूँ जिन के ज़रिए मीडिया हाऊस चलाया जा सकता है। पहला तरीक़ा जिस पर मीडिया हाऊस चल रहे हैं (1) कॉर्पोरेट हाऊस जिस के पास फ़ंड्ज़ इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure), मैन पावर (Man power) और मीडिया हाऊस चलाने का विज़न और रीज़न हो या फिर ऐसी तमाम सलाहियतों वाला कोई शख़्स हो जिस में ज़बरदस्त विल पावर (Will Power) हो और जिसे अवाम की भरपूर हिमायत हासिल हो, दोनों सूरतों को सामने रख कर बात करते हैं। एक न्यूज़ चैनल चलाने के लिए सरकार से लाईसेंस मिल जाने के बाद, कम से कम वन टाइम इनवेस्टमेंट (One Time Investment) 5 करोड़ रुपया,  फिर हर महीने चलाने का ख़र्च क़रीब 1 करोड़ रुपया,  क़ौमी सतह का एक अख़बार चलाने का वन टाइम इनवेस्टमेंट (One Time Investment) क़रीब 2 करोड़ रुपया और हर महीने तक़रीबन 1 करोड़ रुपया जिसमें प्रिंटिंग प्रैस कहीं भी अपना नहीं, सब आउट सोर्सिंग(Out Sourcing)। स्टाफ़ की ज़रूरत 150 टी वी के लिए 125 अख़बार के लिए इनमें ज़िला सतह पर रिपोर्टर्स की तादाद शामिल नहीं है। चैनल के ख़ुद कफ़ील होने के लिए कम से कम एक बरस और अख़बार के लिए 6 महीने दरकार हैं।
दूसरा तरीक़ा फेसबुक और ट्विटर को अपना अख़बार और यू-ट्यूब को अपना चैनल मानो, क़ौम का हर फ़र्द इसमें शामिल हो,  ख़र्च कुछ भी नहीं,  ज़रूरत सिर्फ 1  कमीटेड (Committed)  साथी की जो टेक्निकली परफ़ेक्ट (Technically Perfect)  हो और 24 घंटे काम करने का ज़हन रखता हो,  जब मैं लिखूं या बोलूँ तो ट्विटर और फेसबुक समेत तमाम सोशल नेटवर्किंग साईटस (Social Networking Sites) पर डाल दे और जब मैं कैमरे के सामने बोल रहा हूँ तो उसे रिकार्ड कर यू-ट्यूब पर डाल दे। डीवीडी (DVD) की शक्ल दे दे ताकि मसाजिद मदारिस तक पहुँचाया जा सके,  इस तहरीक को करोड़ों लोगों तक पहुंचाने के लिए सबको अपनी अपनी सतह पर शामिल होना होगा,  मसलन अपनी इलाक़ाई ज़बान में तर्जुमा कर नेट पर डालना, मसाजिद मदारिस तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी क़बूल करना,  जो लिखा उसे पोस्टर की शक्ल में अपने नाम के साथ अख़बारात में रख कर या चस्पा करके अवाम तक पहुंचाना। तरीक़े और भी हैं। मैं रोज़ लिखूं पूरा पेज हिन्दी और उर्दू में कोई एक शख़्स या ग्रुप ज़िम्मेदारी ले मैं उसे मेल कर दूं,  फिर उसकी मर्ज़ी पोस्टर की शक्ल दे कर चस्पा करे या किसी भी तरह छपवाकर फोटो कॉपी करा कर तक़सीम करे,  इसी तरह इंटरनेट के ज़रिए दुनिया के किसी भी कोने में अपनी स्पीच का वीडियो भेजा जा सकता है जिसे आप अपने केबल ऑप्रेटर के ज़रिए हर घर तक पहुंचा सकते हैं,  मैं सिर्फ इस तरीक़े पर काम कर सकता हूँ जब आप अपना पैसा ख़ुद अपने दायरे में अपने ज़रीया ख़र्च करें,  मैं अपने नाम पर या अपने ज़रिए किसी को रक़म दिला कर एनजीओ में जमा करा कर ये काम नहीं कर सकता,  हाँ अगर कोई इदारा ख़ुद ज़िम्मेदारी ले तो मैं मुफ़्त में अपनी ख़िदमत दे सकता हूँ, मुलाज़मत नहीं कर सकता,  किसी से चंदा कर के ये सब नहीं कर सकता, अपने बूते पर जो कर सका वो करूंगा। फिर उसे आगे बढ़ाने के लिए आप जो कर सकते हैं करें,  मसलन मैं किसी टीवी चैनल से रोज़ 30 मिनट का टाइम ख़रीद कर अपने नज़रियात के साथ आता हूँ आप उसे अपने नाम के साथ स्पांसर (Sponsor )करें,  वो पैसा अदा करें,  लोगों को इस टाइम पर देखने के लिए आमादा करें।
आप दुनिया में कहीं भी अख़बार निकाल रहे हैं, अपना लिंक मुझे भेजें,  मुफ़्त में मेरा पेज हासिल करें और छापें,  हर शहर में अपना अख़बार प्लान करें,  मैं तमाम पेज तैय्यार कर आप के दफ़्तर या प्रेस में भेज दूं आप सिर्फ पेज तैय्यार करने का ख़र्च अदा करें। अपने दायरे में सब नफ़ा नुक़्सान आप का।
तरीक़े और भी हैं,  छोटे से छोटे और बड़े से बड़े पर काम कर रहा हूँ,  दोनों तरह का तजुर्बा है , फ़िलहाल मेरी बात को समझने वाले टेक्नीकल एक्सपर्ट और ज़िम्मेदारी उठाने वाले मेरी ई-मेल आईडी पर तफ़्सील से बताएं कि वो क्या कर सकते हैं, अगर मुझे हर शहर में एक ऐसी टीम मिल सकती है,  जो केबल टीवी ऑप्रेटर से बात कर के या मजबूर कर के मेरी बात अपने इलाक़े तक पहुंचाने का इंतेज़ाम कर लें तो मैं आप के घर टीवी पर अपनी बात कहता नज़र आऊँगा,  अगर आप मुझे बताएं कि हर रोज़ किस शहर में कितने अख़बारों के ख़रीदार बना कर पेशगी रक़म अदा कर सकेंगे तो मैं इस लाईन पर ग़ौर करूं,  रास्ते कई और हैं,  किसी एक पर चलना भी है,  बस तय ये करना है कि आप किस तरह तहरीक का हिस्सा बनेगें,  फिर वही तरीक़ा अपनाया जाय। सिर्फ एक आख़िरी बात कह कर इजाज़त लूंगा मेरे तमाम मुख़ालिफ़ीन और बहुत से कद्दावर सियासतदानों को मुझ से सिर्फ एक ग़लती या एक बदनाम किए जा सकने वाले इल्ज़ाम का इंतिज़ार है, जो क़ौम के दरमियान इमेज को ख़राब कर सकें,  लिहाज़ा, पैसे वैसे से दूर रह कर ख़िदमत अंजाम दे सकता हूँ,  माली मदद लेकर काम नहीं कर सकता,  आप भी सोचें और बताएं क्या तरीक़ा अपनाया जाय? मेरी ई-मेल आईडी azizburneyngo@gmail.com  है। घर का पता- रेशमा विला,  डी-188,  सैक्टर- 5 5,  नोयडा, उत्तर प्रदेश, पिन कोड- 201301...... आप के मश्वरों का इंतेज़ार रहेगा...........

Virasat

AZIZ BURNEY
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Ji han aaj m aap k darwaze par ek naye rishtey ka paigham lekar aaya hun ji nahi ye us rishtey ka paigham nahin h Jo do afraid ya do khandanon k darmyan hota h
M us rishtey ka paigham lekar aaya hun Jo poori Qom aur tamam ham khyal logon k darmyan ho
Hamara ek chota pariwar WO pariwar hota h jin se hamara khoon ka rishta hota h Jo hamare khoon se paida hain ya ham jin k khoon se paida hain
Hamara ek barha pariwar WO pariwar ho sakta h jinse hamara sukoon ka rishta h jinhen ham khud qayam karte hain jinse hamara dil ka rishta h Jo hamare hamkhyal hain moonh bole aur god liye rishtey bhi isi dayre m aate hain inki tadad LA mehmood ho sakti h
Jin se aapka khoon ka rishta h WO aapki khandani virasat k haqdar hain aur jinse aapka sukoon w junoon ka rishta h WO aapki amli virasat k haqdar hain aaj meri virasat do hisson m bati h ek WO Jo mitti ki virasat h jise ek din mitti m mil Jana h WO zamin zaydat eint pathar k makanat Jo mitti k siwa kuch nahin
Meri ek virasat WO h Jo meri shanakht h Jo meri qalmi aur amli tehreek h jis k haqdar aap sab ho sakte hain bal k aap us k haqdar hain
Aaj m aapse isi rishtey ki bat karne aap k pas aaya hun tehreek e aazadi kisi ek khandan ki virasat nahin UN hazaron lakhon khandanon ki marhoone minnat h jinka khoon is aazadi ki tehreek m shamil h
Junoon ka rishta
Aaj ek bar phir m ek naye junoon k sath maidane amal m aaya hun Jo mere nazdeek zehni aazadi ki tehreek h haqiqi aazadi ki tehreek h m jis media team ki bat kar raha hun WO team h jis se mera junoon ka rishta h meri amli virasat ka hissa h is tehreek ko hamesha hamesha mere bad bhi UN k bad bhi zinda rehna h kya qayam hoga aap se mera ye junoon ka rishta kya banenge aap is tehreek ka hissa
Agar han to azrahe karam mere is rishtey k paigham ko qubool kar Len Jo aaj m aapki khidmat m lekar aaya hun aur pahuncha den ye paigham UN sab tak jin k sath sukoon ka aur junoon ka rishta qayam ho sakta h
Mujhe aap sab k jawab ka bahut besabri k sath intzar rahega m bat khatm karne se qabl ye arz kar dena chahta hun k Maine aaj tak ki zindgi m UN sab k sath apne rishtey ko poori imandari se nibhaya h jinse mera khoon ka rishta nahin h aur inshallh aage bhi isi imandari aur mohabbat se nibhane k azm k sath aaj k is paigham ko tamam karta hun .
aapka
Aziz Burney

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