अज़ीज़ बर्नी
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दुनिया में हर बड़े काम की शुरूआत एक ख़्वाब से होती है, फिर उसे हक़ीक़त में बदलने की कोशिश की जाती है, कोशिश कामयाब हो जाय तो एक तारीख़ बन जाती है, नाकाम हो जाय तो आने वाली नस्लों के लिए तजुर्बा। ये कोशिश कामयाब होगी या नाकाम मैं इससे ज़्यादा कोशिश को जारी रखने में दिलचस्पी रखता हूँ, अगर आप को याद हो तो मैंने 21 बरस पहले एक ख़्वाब देखा था, उर्दू सहाफ़त के ज़रिए क़ौम के मसाइल पर काम करने का, अख़बार को क़ौम की नुमाइंदगी और एक ताक़त बनाने का मेरा ये ख़्वाब हक़ीक़त में बदला या नहीं, आज़ादी के बाद क़ौम को ऐसा अख़बार मिला कि नहीं जो हुकूमतों पर असरअंदाज़ हो सके, ये आप सोचें, शायद किसी नतीजे पर पहुंचने में मदद मिले, फिर एक ख़्वाब देख रहा हूँ पूरा हुआ तो एक और नई तारीख़, क़ौम को मज़बूती, नई नस्ल के बेहतर मुस्तक़बिल की उम्मीद, पूरा ना हुआ तो भी सुकून एक और अच्छा काम करने की कोशिश की, अपने मुस्तकबिल की फ़िक्र नहीं, अल्लाह का बड़ा करम है, एक शानदार ज़िंदगी जी चुका और जी रहा हूँ, मौत को सामने देख कर जीता हूँ। अपने लिए ख़ानए काबा से कफ़न ख़रीद चुका हूँ। अपनी तदफ़ीन के लिए अपनी पसंद की ज़मीन ख़रीद चुका हूँ, जो कर चुका वो एक तारीख़ है, क़ौम ने जितनी इज़्ज़त और प्यार दिया ये बहुतों का ख़्वाब हो सकता है। सियासत में नहीं आना जो सियासत में हैं उन्हें क़ौम का मुस्तकबिल बनाने की कोशिश करते रहना है, इस फ़ेहरिस्त में जो नाम हैं वो सब मेरी पसंद के एतबार से नहीं, क़ौम की ज़रूरत के एतबार से हैं, जिन से ज़ाती तौर पर नज़रियाती इख़्तेलाफ़ रहा है उन के नाम भी हैं और भी हो सकते हैं जो नए नाम सामने रखे इनमें पापुलर फ्रंट के मौलाना अबु बकर के ज़रिए बेशक केरला और तमिलनाडू की शानदार नुमाइंदगी हो सकती है।
अभी तक मैंने उन लोगों से राबिता नहीं किया है शायद उन लोगों को मालूम भी ना हो, आज से ये सिलसिला शुरू करने जा रहा हूँ, फ़ोन पर भी वक़्त लेकर इन सब से मिलने की दरख़ास्त करके भी, रहा सवाल इन सब के मुत्तहिद होने का ये कोई बड़ा मसला नहीं होना चाहिए, बेशक अलग अलग प्लेटफार्म या सियासी पार्टी में हैं पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ कहां हैं, मौलाना बुख़ारी साहब और अबु आसिम आज़मी मुलायम सिंह के साथ हैं। मौलाना महमूद मदनी, मौलाना बदर उद्दीन अजमल अलग अलग पार्टी में सही पर आपस में भी अच्छे रिश्ते हैं और कांग्रेस से भी। ज़फ़र अली नक़वी, मौसम नूर, आफ़ताब एमएलए और ज़ाहिदा बेगम एमएलए कांग्रेस से ही हैं, रहमान शरीफ़ भी कांग्रेस फ़ैमिली से हैं सिर्फ डाक्टर अय्यूब अंसारी एक अलग पार्टी के हैं, पर उनका कोई नुमाइंदा पार्लियमेंट में नहीं है, इसलिए उनका स्टैंड (Stand) क्या होगा नहीं मालूम पर रहेंगे तो सेकुलर इत्तेहाद के साथ ही। असद उद्दीन ओवैसी इत्तेहादुल मुस्लिमीन के लीडर हैं पर हैं तो कांग्रेस के साथ ही, इनके अलावा मैंने मुलायम सिंह और मायावाती का नाम लिया, आपस में एक दूसरे के ख़िलाफ़ हैं पर दोनों ही सरकार बचाने के लिए कांग्रेस के साथ हैं, दोनों को ही हमारा एहसानमंद होना चाहिए, जब जो ताक़तवर बना, सरकार बनाई, हमारे बल पर। अगर ये सब हमारी ताक़त का सहारा लेकर सरकार बचाने के लिए एक हो सकते हैं तो एक ऐसी सरकार बनाने के लिए एक प्लेटफार्म पर क्यों नहीं हो सकते जिस में हमारी भी हिस्सेदारी हो, हम बाहर से किसी सियासतदाँ को ला नहीं रहे हैं जो इस वक़्त भी उनके साथ हैं, हाँ बस फ़र्क़ इतना है कि आज अपनी और उनकी जरूरतों के लिए साथ हैं और कल हम उन्हें क़ौम की जरूरतों के लिए एक देखना चाहते हैं।
अब रहा सवाल इस बात का कौन साथ आयेंगे और कौन नहीं आयेंगे अगर आप मुंतशिर हैं तो कोई आप के साथ नहीं आयेंगे, लेकिन जब आप सब मुत्तहिद होंगे तो आप के साथ आना उनकी मजबूरी होगी, चाहे वो मुलायम सिंह हों या माया वती या कोई और, इनमें से कौन आप के वोट के बगै़र ताक़तवर हो सकता है, आप का वोट लेकर कांग्रेस के साथ जाना है तो हमारे बेगुनाह बच्चों को आज़ाद कराएं , सिर्फ अपने लिए हमारे वोट का सौदा ना करें, अगर कांग्रेस और बीजेपी को किनारे कर के सरकार बनाने का इरादा है तो आओ साथ हमारे, ये भी हमारे बगै़र नहीं हो सकता, हालात कांग्रेस का साथ लेकर या कांग्रेस को साथ दे कर ही पैदा होते हैं तो भी हम रुकावट कहां हैं बस हम तो ये चाहते हैं हमारा वोट लो अगर हमारे एजेंडे पर, हम ना मुस्लिम पार्टी बनाने की बात कर रहे हैं ना किसी की हिमायत या मुख़ालिफ़त की बात कर रहे हैं, आप लोग जो कर रहे हो, करो लेकिन हमें साथ लेकर करो, हमारे मसाएल के हल के साथ करो, जिसके भरोसे में हम आपको वोट देते हैं। ये क्या कि वोट हमारा राज तुम्हारा, हम मारे जाएं, तुम ज़िम्मेदार लेकिन ना तुम आँसू पोंछने आओ, ना इंसाफ़ दिलाने।
ऊपर नामों के हवालों में शुऐब इक़बाल का ज़िक्र नहीं था वो भी दिल्ली स्टेट के डिप्टी स्पीकर कांग्रेस की मदद से रहे हैं, हाँ यासीन मालिक की बात सब से अलग है। वो अभी तक सियासी नहीं हैं लेकिन कश्मीर के अवाम पर उनका गहरा असर है। वो आएं सियासत में, कहें अपनी बात पार्लियमेंट में, शायद मसले का हल निकलने की सूरत बने। इनके अलावा कुछ दीगर आईएएस, आईपीऐस और जज हज़रात के नाम भी सामने आए हैं। ये हमारा थिंक टैंक बनें, जब जो सियासत में आना चाहें उनका ख़ैर मक़दम हो या दीगर बड़े ओहदों पर इनकी तकर्रुरू हो, सब कुछ हो सकता है, अगर अपनी ताक़त पहचान लो और अगर बदक़िस्मती से बड़े लोगों की मजबूरियां उन्हें मुत्तहिद ना होने दें तो क़ौम मुत्तहिद होने के लिए तैय्यार रहे, कुछ और सोचा जाएगा, अगर बहुत मजबूरी हुई, मैं जानता हूँ इस वक़्त ये बातें अख़बार में नहीं लिख पा रहा हूँ इसलिए बड़े दायरे में नहीं पहुंच पा रही हैं लेकिन ये कमी आप पूरी कर सकते हैं। आपकी तजवीज़ मौलाना अरशद मदनी साहब के लिए भी है जिस पर तब्सिरा अभी नहीं लेकिन जमीयत उल्माए हिंद के तमाम अफ़राद का तआवुन दरकार है चाहे उनका ताल्लुक किसी भी ग्रुप से क्यों न हो, अभी मौलाना अरशद मदनी साहब के बारे में कुछ भी लिखना या कहना नहीं चाहता, वक्त आने पर सब कुछ आपके सामने रख दूँगा, फिर जो भी आपका फैसला होगा सर आँखों पर...........
शनिवार, 1 अक्टूबर 2016
एन.जी.ओ.- कितना ख़्वाब कितनी हक़ीक़त
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