मंदिर पे भी बरसता है..
ए बादल बता तेरा मजहब कौनसा है........।।
इमाम की तू प्यास बुझाए
पुजारी की भी तृष्णा मिटाए..
ए पानी बता तेरा मजहब कोन सा है.... ।।
मज़ारो की शान बढाता है
मुर्तीयों को भी सजाता है..
ए फूल बता तेरा मजहब कौनसा है........।।
सारे जहाँ को रोशन करता है
सृष्टी को उजाला देता है..
ए सुरज बता तेरा मजहब कौनसा है.........।।
मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है
हिंदू आखिर तूझ में ही विलीन होता है..
ए मिट्टी बता तेरा मजहब कौनसा है......।।
ऐ दोस्त मजहब से दूर हटकर, इंसान बनो
क्योंकि इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता.।।
गुलज़ार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें