क़ासिम ख़ुरशीद
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हम जिनको इंसान बनाते रहते हैं
वो दिल को वीरान बनाते रहते हैं
ये दुनिया तो प्यार से कितनी खiली है
हम हैं कि शैतान बनाते रहते हैं
जिन को तू ने गुमनामी में छोड़ा है
अक्सर वो सुल्तान बनाते रहते हैं
जो पहले सीने पे खंजऱ सहते हैं
वो जीना आसान बनाते रहते हैं
किलकारी का क़त्ल यहाँ पर होता है
क्यों घर को सुनसान बनाते रहते हैं
फुटपाथों पर जिन की किस्मत सोती है
घर वो आलीशान बनाते रहते हैं
लंबे सफ़र पे ख़ाली हाथ जो होते हैं
वो घर के सामान बनाते रहते हैं
अंदर अंदर कोई तेलावत करता है
हम दिल को क़ुर'आन बनाते रहते हैं
अब क़ासिम पर कैफ़ो-कम का आलम है
वो ग़म का दीवान बनाते रहते हैं
मंगलवार, 20 सितंबर 2016
हम जिनको इंसान बनाते रहते हैं
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