रविवार, 2 अक्तूबर 2016

अजीज बर्नी की कलम से

Aziz Bundy
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एनजीओ / मीडिया हाऊस / मुसलमान और मुस्लिम मुख़ालिफ़ ज़हनियत
एनजीओ और मीडिया हाऊस पर जो कमेन्स्, पढ़ने को मिले वो बहुत हौसला अफ़्ज़ा हैं। रोड मैप से लेकर काम करने के जज़्बे तक बहुत कुछ सामने आया। सबसे पहले मैं बुनियादी ज़रूरतें आपके सामने रख दूं फिर आज तमाम नशेबो फ़राज़ को ज़हन में रख कर मुख़्तलिफ़ पहलुओं पर लंबी गुफ़्तगु होगी और मैं ये भी वाज़ेह कर दूँ कि इस वक़्त जो कुछ फेसबुक या ट्विटर पर मैं लिख रहा हूँ और अमली तौर पर जद्दोजहद कर रहा हूँ और साथ ही आप सबके जो कमेन्स्  सामने आ रहे हैं। मैं इन सबको यकजा करके एक किताब की शक्ल दे रहा हूँ लिहाज़ा आप भी जब कुछ लिखें तो ये सब ज़हन में रहे कि ये तमाम बातें तारीख़ के औराक़ में दर्ज हो रही हैं वो इसलिए कि जहां भी ये काम रुक जाय उसे आगे लेकर चलने वालों के ज़हन में आज की पेशरफ़्त और लोगों के तास्सुरात, अच्छे भी बुरे भी और तमाम लोगों की काविशें इन सबका नतीजा रिकार्ड में रहे। मेरी पहली ज़रूरत 1. वेब डिज़ाइनर 2. टेक्निकल एक्सपर्ट जो मेरे राइट अप (मज़ामीन) को तर्जुमा कर के सोशल नेटवर्किंग साईट्स और बल्क एसएमएस (Bulk SMS) व ई-मेल्स पर बड़ी तादाद में सेंड(Send) कर सके। मैं जो कुछ हर रोज़ करंट अफेयर्ज़ (Current Affairs हालाते हाज़रा) पर बोल रहा हूँ उसे यू-टयूब (YouTube) पर अपलोड (Upload) कर सके। 3. कोआर्डीनेटर जो ऐसे तमाम अफ़राद से राबता क़ायम कर सके जो फेसबुक या नेट पर नहीं हैं। ऐसे 3 / 4 लोग जो अपनी ज़िंदगी को इस मिशन के लिए वक़्फ़ कर सकें। जो इन कामों को करने की भरपूर सलाहियत रखते हों और 24 घंटे मेरे साथ रह सकते हों, मैं जहां भी हूँ अपने घर पर या सफ़र में साथ रहें या अपने तमाम अख़राजात ख़ुद उठा सकते हों या क़ौम उनकी ख़िदमात के लिए उनकी और उनकी फ़ैमिली की तमाम ज़िम्मेदारियां बहुत बेहतर अंदाज़ में क़ुबूल कर सकें, तो हम 24घंटे का ऐसा लाइव मीडिया (Live media) दे सकते हैं जो अभी लोगों के तसव्वुर से बहुत दूर है। उसे शुरू करने के लिए जितनी ज़रूरी रक़म की ज़रूरत होगी यानी कैमरा, कम्प्यूटर, एडीटिंग सिस्टम, मिनी स्टूडियो, इंटरनेट वग़ैरा ये सब मैं ख़ुद करूंगा, अल्लाह का करम है उतना मैं ख़ुद कर सकता हूँ पर इससे आगे हर घर तक पहुंचाने के लिए जो भी करना पड़े वो क़ौम को करना होगा और इस मुहिम में लाखों लोगों को जुड़ना होगा। तमाम मन्फ़ी पहलूओं को सामने रखना होगा।
आज मैं कुछ बातें आपके सामने रख रहा हूँ ताकि मुख़ालिफ़ हालात के लिए आप जाने अनजाने उन लोगों को ज़िम्मेदार ना मान लें जो सीधे इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं। बेशक मैं जानता हूँ उन लोगों को जो क़ौम की तर्जुमानी किसी भी मीडिया या फ़र्द के ज़रिया नहीं चाहते,  ग़ैरों पर शक मत कीजिए, जिस दिन सारी हक़ीक़त सुबूतों के साथ आपके सामने रख दूंगा आप के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल जाएगी। बेशक मुख़ालिफ़ों में ग़ैर भी शामिल हैं पर ज़्यादा ख़तरा अपनों से है। इस वक़्त इसलिए ये लिख रहा हूँ कि जो 3 / 4 लोग पूरी तरह मेरी साथ जुड़ें वो ये सोच कर जुड़ें कि हर पल जान हथेली पर लेकर चलना है। बात सिर्फ ये नहीं के 24 घंटे काम करने के बाद भी कुछ नहीं मिलना है बल्कि हर पल ख़तरे के साथ ज़हनी तनाव के साथ अपनों के दबाव के साथ जीना है,  मगर भरपूर तवज्जो के साथ हर पल अपने काम (मिशन) में जुटे रहना है,  यूं समझो कि सर पर कफ़न बांध कर मैदाने जंग में उतरना है, अब जंग सिर्फ़ हथियारों से नहीं लड़ी जाती। आज मीडिया जंग का बहुत बड़ा हथियार है। आप मुझे क़ौम से ऐसे सिर्फ़ 4 लोग दे दीजिए, मैं इन्शाअल्लाह बड़ी से बड़ी मुख़ालिफ़ ताक़तों को नाकाम बना कर दिखा दूंगा।
हिंदुस्तान में मुसलमानों की आबादी तक़रीबन20 करोड़ है, मुसलमानों के नुमाइंदे ज़्यादा से ज़्यादा 200 । इनमें से 100 (सौ) सियासत में, चाहे वो सेंटर में मिनिस्टर हों, स्टेट में मिनिस्टर या अपनी सियासी हैसियत की वजह से,  इसी तरह तक़रीबन सौ लोग अलग अलग मुस्लिम इदारों के सरबराह,  मीडिया पर्सन्स, बड़े क़द के दानिश्वर, बिज़नस मैन या दीगर नुमाइंदा अफ़राद इन तक़रीबन 200 लोगों की लिस्ट आई बी (Intelligence Bureau),  सीबीआई,  होम मिनिस्ट्री ग़रज़ कि हिंदुस्तान की हुकूमत, अपोज़ीशन और उन सभी पार्टियों के पास होती है जो मुसलमानों के वोट पर सियासत करते हैं। इन 200 लोगों तक मुसलमान की रेसाई बहुत कम कभी कभी या जब वो चाहते हैं तभी होती है लेकिन ऊपर जिन सबका ज़िक्र किया,  ये सब अपनी अपनी ज़रूरियात या ख़्वाहिशात के हिसाब से उनके राब्ते में रहते हैं चाहे सियासी ख़्वाब पूरा करना हो, माली या अपने क़द में इज़ाफ़ा के लिए, लिहाज़ा, ये ना किसी सरकार से बिगाड़ना चाहते हैं ना दूसरी सियासी ताक़तों से, कब कौन पावर में आ जाय, कब किस की ज़रूरत पड़ जाय, हुकूमतों के लिए उन्हें ख़्वाब दिखा कर फ़ायदा पहुंचा कर या नुक़्सान से डरा कर क़ाबू में रखना, कुछ भी मुश्किल नहीं होता, यही वजह है कि मुसलमानों के साथ हिंदुस्तान में चाहे जो सुलूक हो सरकारें उनसे बेखौफ रहती हैं ये या तो चुप रहते हैं या बस इतना बोलते हैं के मुसलमानों को लगे कि हाँ आवाज़ उठाई थी और सरकार बेफ़िक्र रहे कि बस चेहरा बचाने की कोशिश है। इतना तो उन्हें करना ही चाहिए ताकि कल वोट दिलाने के काम आ सकें। उर्दू सहारा के एडिटर अज़ीज़ बर्नी का क़ुसूर ये था कि वो गुजरात में बीजेपी के ख़िलाफ़ था, महाराष्ट्र में शिवसेना के, तो बटला हाऊस और गोपालगढ़ में कांग्रेस के, कल्याण सिंह से दोस्ती की बिना पर अपने 2 2 साल पुराने दोस्त मुलायम सिंह से लड़ बैठा,  दहशतगर्दी के सवाल पर आरएसएस को बेनकाब कर दिया तो मुस्लिम नुमाइंदों से उनकी ख़ामोशी पर जवाब तलब करने लगा, सहारा उर्दू की ताक़त इतनी थी कि कोई भी नज़रअंदाज करने की हिम्मत नहीं कर सकता था, यही वजह थी कि सब के लिए इस आवाज़ को ख़त्म करना ज़रूरी था। लिहाज़ा, ऐसा रास्ता निकाला जाय जो सब को सूट करता हो यानी, अज़ीज़ बर्नी तो ज़िंदा रहे और उसके क़लम की मौत हो जाय। सहारा उर्दू तो ज़िंदा रहे लेकिन तहरीक दम तोड़ जाय,  सब एक साथ एक राय हों तो मुश्किल क्या, लिहाज़ा, ये हो गया, एक तवील दास्तां की हल्की सी झलक आपके सामने इसलिए कि आपकी बेपनाह मोहब्बत भरे जज़्बात को देख रहा हूँ जो हर क़ुर्बानी पर आमादा हैं करोड़ों रुपया इकट्ठा कर के क़दमों में डाल देना चाहते हैं वो पहले इस सच्चाई को समझ लें कि करोड़ों रुपया इकट्ठा करने से ज़्यादा ज़रूरी है ये सच करोड़ों लोगों तक पहुंचा देना, पैसा जमा किया जा सकता है,  मीडिया हाऊस खड़ा किया जा सकता है, हिंदुस्तान में 200 से ज़्यादा उर्दू अख़बार हैं।
मेरे कई साथी अब अपने अपने अख़बार निकालते हैं,  मैं 21 बरस पहले अपना अख़बार निकालता था, अगर ये तब कर सका तो आज क्या मुश्किल है। कोई मुश्किल नहीं अकेले दम भी एक उर्दू अख़बार निकाल सकता हूँ, आप पर भरोसा है। वो कामयाब भी होगा। लेकिन 21 बरस लगे सहारा उर्दू को इतनी बड़ी ताक़त बनाने में, कि क़ौम की नुमाइंदगी कर सके और 21 घंटे से कम लगे इस नुमाइंदगी को तहस नहस कर देने में, इस दरमियान सहारा इंडिया परिवार का 100 करोड़ रुपय से ज़्यादा ख़र्च हुआ, इस अख़बार को ताक़तवर बनाने में क़ौम को इसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए, मैं ख़ुद ज़िंदगी भर एहसानमंद रहूँगा, इस हक़ीक़त को सामने रख कर उगला क़दम उठाना होगा

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