मंगलवार, 20 सितंबर 2016

1757 से 1857 तक सिर्फ़ मुसलमानो ने अंग्रेज़ों से जेहाद किया था

1757 से 1857 तक सिर्फ़ मुसलमानो ने अंग्रेज़ों से जेहाद किया था
1757 से 1857 तक सिर्फ़ मुसलमानो ने अंग्रेज़ों से जेहाद किया था
1772 मे शाह अब्दुल अज़ीज़ रह० ने अंगरेज़ो के खिलाफ जेहाद का फतवा दे दिया ( हमारे देश का इतिहास 1857 की मंगल पांडे की KIRANTI को आज़ादी की पहली KIRANTI मानता है जबके शाह अब्दुल अज़ीज़ रह० 85 साल पहले आज़ादी की KRINTI की लो हिन्दुस्तानीयो के दिलों मे जला चुके थे इस जेहाद के फतवे के ज़रिए ) इस जेहाद के ज़रिए उन्होंने कहा के अंगरेज़ो को देश से निकालो और आज़ादी हासिल करो और ये मुसलमानो पर फर्ज़ हो चुका था ।
1772 के इस फतवे के बाद जितनी भी तहरीके चली वो दरासल इस फतवे का नतीजा थी * वहाबी तहरीक * तहरीके रेशमी रूमाल * जंगे आज़ादी * तहरीके तर्के मुवालात * और तहरीके बाला कोट या इस तरह की जितनी भी कोशिशें थी वो सब के सब शाह अब्दुल अज़ीज़ रह० के फतवे का नतीजा थी मुसलमानों के अन्दर एक शऊर पैदा होना शुरू हो गया के अंगरेज़ लोग फकत अपनी तिजारत ही नहीं चमकाना चाहते बल्के अपनी तहज़ीब को भी यहां पर ठूसना चाहते है इस शऊर को पैदा होने के बाद दूसरे उलमा इकराम ने भी इस हकीकत को महसूस किया के हमे अंगरेज़ो से निजात पाना ज़रुरी है ॥
वहाबी आन्दोलन
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वहाबी आंदोलन उन्नीसवी शताब्दी के चौथे दशक के सातवें दशक तक चला। इसने सुनियोजित रूप से ब्रिटिश प्रभुसत्ता को सबसे गम्भीर चुनौती दी।वैसे वहाबी आंदोलन कहने को तो धार्मिक आंदोनल था, लेकिन इस आंदोलन ने राजनीतिक स्वरुप ग्रहण कर लिया था और वह भारत से ब्रितानी शासन को उखा़डने की दिशा में अग्रसर हो चला था। वहाबी विद्रोह 1828 ई. से प्रारम्भ होकर 1888 ई. चलता रहा था। इतने लम्बे समय तक चलने वाले ‘वहाबी विद्रोह’ के प्रवर्तक रायबरेलीके ‘सैय्यद अहमद’ थे।
सैयद अहमद ने वहाबी आंदोलन का नेतृत्व किया और अपनी सहायता के लिए चार खलीफे नियुक्त किए, ताकि देशव्यापी आंदोलन चलाया जा सके। उन्होंने इस आंदोलन का केन्द्र उतर पश्चिमी कबाइली प्रदेश में सिथाना बनाया। भारत में इसका मुख्य केन्द्र पटना और इसकी शाखाएँ हैदराबाद, मद्रास, बंगाल, यू. पी. एवं बम्बई में स्थापित की गईं। इस आन्दोलन का मुख्य केन्द्र पटना शहर था। सैयद अहमदशाह के पश्चात् बिहार के मौलावी अहमदुल्ला इस संप्रदाय के नेता बने.. पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आन्दोलन के प्रमुख नायक थे।
सैय्यद अहमद पंजाब और बंगाल में अंग्रेज़ों को अपदस्थ कर भारतीय शक्ति को पुर्नस्थापित करने के पक्षधर थे। इन्होंने अपने अनुयायियों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित कर स्वयं भी सैनिक वेशभूषा धारण की। उन्होंने पेशावर पर 1830 ई. में कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया तथा अपने नाम के सिक्के भी चलवाए। इस संगठन ने सम्पूर्ण भारत में अंग्रेज़ों के विरुद्ध भावनाओं का प्रचार-प्रसार किया।
1857 में इस आन्दोलन का नेतृत्व पीर अली ने किया था, जिन्हें कमिश्नर टेलबू ने वर्तमान एलिफिन्सटन सिनेमा के सामने एक बडे पेड़ पर लटकवाकर फांसी दिलवा दी, ताकि जनता में दहशत फैले। इनके साथ ही ग़ुलाम अब्बास, जुम्मन, उंधु, हाजीमान, रमजान, पीर बख्श, वहीद अली, ग़ुलाम अली, मुहम्मद अख्तर, असगर अली, नन्दलाल एवं छोटू यादव को भी फांसी पर लटका दिया गया
1857 ई. के सिपाही विद्रोह में ‘वहाबी’ लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से विद्रोह में न शामिल होकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने का प्रयास किया।
मौलवी अहमदुल्ला के नेतुत्व में वहाबी आंदोलन ने स्पष्ट रूप से ब्रितानी विरोधी रुख धारण कर लिया। भारत में ब्रितानियों के विरुद्ध कोई सेना ख़डी नहीं की जा सकती थी इस कारण मौलवी अहमदुल्ला ने मुजाहिदीनों की एक फौज सीमा पार इलाके के सिताना स्थान पर ख़डी की। उस सेना के लिए वे धन, जन तथा हथियार भारत से ही भेजते थे।1860 ई. के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत इस विद्रोह को कुचलने में सफल रही।
सन् 1865 में मौलवी अहमदुल्ला को बड़ी चालाकी के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाया गया। बहुत लालच देकर ही शासन उनके विरुद्ध गवाही देने वालों को तैयार कर सका। इस मुकदमे में सेशन अदालत ने तो मौलवी साहब को प्राणदंड की सजा सुनाई, लेकिन हाईकोर्ट मे अपील करने पर वह आजीवन कालेपानी की सजा में बदल गई। मौलवी साहब को कालेपानी की काल कोठरियों में डाल दिया गया।
अगरचे मौलवी अहमदुल्ला कालेपानी की काल कोठरी में कैद थे, लेकिन वे वहाँ से भी भारत में चलने वाले वहाबी आंदोलन को निर्देशित करते रहे। वे सरहद पार के गाँव सिताना में मुजाहिदीनों की फौज को भी निर्देश करते थे..
उन्ही के इशारे पर 1971 मे बंगाल के चीफ जस्टिस पेस्टन नामॅन की हत्या अबदुल्ला नाम के एक शख़्स ने उस समय कर दी,

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