शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

जन प्रतिनिधियों की बेहिसी की बोलती तस्वीर

परिहार  (सीतामढी )। ये एकडंडी प्रधानमंत्री मंत्री सड़क योजना से बने पथ के ईदगाह के नजदीक की तस्वीर है ।मालूम हो कि इस पथ से मुखिया और प्रखणड प्रमुख का गुजर हमेशा होता है मगर बेहिसी इतनी के निदान की कोई कोशिश नही ।

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

उन्मुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन



परिहार  (सीतमढी)।प्रखणड लोक शिक्षा समिति की समन्वयक अर्चना कुमारी की अध्यक्षता में प्रखणड संसाधन केन्द्र के सभा कक्ष में तालिमी मरकज़ शिक्षा स्वयं सेवक, टोला सेवक एंव प्रेरक का एक दिवसीय उन्मूखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विस्तार से आठ सप्ताह के कार्यक्रम के बारे में बतलाया गया । बैठक में लेखा समन्वयक दुखा बैठा केआरपी विरेन्द्र यादव शिक्षा स्वयं सेवी मो○कमरे आलम ने बैठक को सम्बोधित किया ।

सोमवार, 26 सितंबर 2016

बिहार की शिक्षा को बर्बाद करने में किस का हाथ ?

बिहार की शिक्षा को बर्बाद करने में किस का हाथ है ? इस विषय पर अवश्य चर्चा वाद-विवाद होनी चाहिए जब देश प्रदेश का शिक्षाविद बुद्धिजीवी वर्ग वाद विवाद करना छोड़ देता है तो ह्रास होना शुरू हो जाता है यही हालात आज बिहार में शिक्षा का हो गया है बुद्धिजीवियों के खामोशी ने बिहार मे शिक्षा को नित्य नये प्रयोग की सामग्री बना शिक्षा को बर्बाद किया जा रहा है।
              बिहार की 80 प्रतिशत आबादी शिक्षा के मामलों में सरकारी स्कूलों पर निर्भर करती है और सरकार का नित्य नया नया प्रयोग यहीं होता है क्योंकि मध्यम वर्गीय और गरीबों के बच्चे यहीं पढ़ते हैं ।

ए आर रहमान ने मज़हब इस्लाम क्यों क़बुल किया ?

हम ईश्वर की शरण में आना चाहते थे !

इस्लाम कबूल करने का फैसला अचानक नहीं लिया गया। यह फैसला मेरा और मेरी मां दोनों का सामूहिक फैसला था। हम दोनों सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में आना चाहते थे।
संगीतकार ए आर रहमान ने सन् 2006 में अपनी मां के साथ हज अदा किया था। हज पर गए रहमान से अरब न्यूज के सैयद फैसल अली ने बातचीत की। यहां पेश है उस वक्त सैयद फैसल अली की रहमान से हुई गुफ्तगू।

भारत के मशहूर संगीतकार ए आर रहमान किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
तड़क-भड़क और शोहरत की चकाचौंध से दूर रहने वाले ए आर रहमान की जिंदगी ने एक नई करवट ली जब वे इस्लाम की आगोश में आए। रहमान कहते हैं-इस्लाम कबूल करने पर जिंदगी के प्रति मेरा नजरिया बदल गया।
भारतीय फिल्मी-दुनिया में लोग कामयाबी के लिए मुस्लिम होते हुए हिन्दू नाम रख लेते हैं, लेकिन मेरे मामले में इसका उलटा है यानी था मैं दिलीप कुमार और बन गया अल्लाह रक्खा रहमान। मुझे मुस्लिम होने पर फख्र है।
संगीत में मशगूल रहने वाले रहमान हज के दौरान मीना में दीनी माहौल से लबरेज थे। पांच घण्टे की मशक्कत के बाद अरब न्यूज ने उनसे मीना में मुलाकात की। मगरिब से इशा के बीच हुई इस गुफ्तगू में रहमान का व्यवहार दिलकश था। कभी मूर्तिपूजक रहे रहमान अब इस्लाम के बारे में एक विद्वान की तरह बात करते हैं।

दूसरी बार हज अदा करने आए रहमान इस बार अपनी मां को साथ लेकर आए। उन्होने मीना में अपने हर पल का इबादत के रूप में इस्तेमाल किया। वे अराफात और मदीना में भी इबादत में जुटे रहे और अपने अन्तर्मन को पाक-साफ किया। अपने हज के बारे में रहमान बताते हैं-अल्लाह ने हमारे लिए हज को आसान बना दिया। इस पाक जमीन पर गुजारे हर पल का इस्तेमाल मैंने अल्लाह की इबादत के लिए किया है।

रविवार, 25 सितंबर 2016

संवेदना का ह्रास

निचले तबक़े के आदमियों से दूर होती संवेदना बहुत चिंता का विषय है, दो तीन दिनों से झारखंड के एक सरकारी अस्पताल में, मरीज़ को फर्श पर भोजन परोसने जैसी संवेदनशील ख़बर, चर्चा में बहस का विषय है।

कौन कौन दोषी हो सकते हैं, इस घटना को अंजाम देने के लिए? सत्ता, पूंजीपति, व्यवस्था, अस्पताल की ऐडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट, इस घटना में सिर्फ आसमान में उड़ने वाले ही नहीं शामिल हैं, बल्कि ज़मीन से जुड़े लोग भी शामिल हैं, हम उन्हें अनदेखा कैसे कर सकते हैं? खाना परोसने वाला कोई पूंजीपति या राजनीतिज्ञ नहीं था, एक अदना सा कर्मचारी है, अस्पताल में डी ग्रेड कर्मचारियों की तनख़्वाह होती ही कितनी है, बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने मात्र ।  मतलब कि अस्पताल में जिस व्यक्ति ने निर्मम घटना को अंजाम दिया, वो एक आम आदमी है। बहुत भयावह स्थिति है, एक आम आदमी के भीतर से संवेदना, जिम्मेदारी का नष्ट हो जाना। फिर कटघरे में सिर्फ सत्तापक्ष और पूंजीवादी व्यवस्था ही क्यों?

साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, अक्सर अपनी रचनाओं के माध्यम से,  समाज के उच्चवर्गीय, मध्यवर्गीय लोगों में, संवेदनाओं के नष्ट होने की दुहाई देते रहते हैं, पूंजीपतियों और नेताओं के व्यवहार पर टिप्पणी करते रहते हैं, व्यवस्था का विरोध करते रहते हैं, आम आदमी की स्थितियों- प्रस्थितियों , मज़बूरीयों का वर्णन करते हैं, लेकिन आज आम आदमी की भी संवेदना नष्ट हो गई है, वो भी दोषियों की श्रेणी में खड़ा है, तो उसे कटघरे में क्यों नहीं खड़ा करना चाहिए?

इस घटना में अगर सत्ता, व्यवस्था, पूंजीपति, अस्पताल का ऐडमिनिस्ट्रेटिव, डिपार्टमेंट जितना दोषी है उतना ही दोषी वह आम आदमी कहलाने वाला कर्मचारी भी है। और कहीं न कहीं सोशल मीडिया और बिकी हुई मिडिया भी, जिसने तस्वीर खींच कर सोशल मीडिया पर साझा की, सबसे बड़ा  असंवेदनशील व्यक्ति तो वही है, जिसने तस्वीर खींच कर पूरे हिन्दुस्तान में संप्रेषित करने की जहमत की, लेकिन उस खाना परोसते हुए कर्मचारी का हाथ नहीं पकड़ा, उसके मुँह पर तमाचा नहीं मारा। इतनी ही संवेदना थी तो पहले उस मरीज़ को प्लेट में खाना मुहैया करवाता, अस्पताल वालों ने नहीं दिया तो, वही अपने केमरा चलाने से पहले, उस मरीज़ को सम्मान पूर्वक भोजन करा देता, उसके बाद मिडिया और सोशल मीडिया की रोटियां सेकने का इंतजाम करता।

मरीज़ कितना विवश था कि, उसने विरोध नहीं किया, खाना खा लिया फर्श से ही उठाकर। उसके परिवार वाले कहाँ थे? क्या वो घर से ज़रूरी वस्तुएं मरीज़ के लिए नहीं ला सकते थे? या फिर  इस घटना का दूसरा पहलू यह है कि, वो मरीज़ अकेला ही था अस्पताल में भर्ती, और उसके परिवार के सदस्य उसके साथ अस्पताल में रहने के लिए असमर्थ होंगे, किन्हीं कारणों से। कैसी - कैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है एक ग़रीब आदमी को। जिसकी ओर सत्ता का ध्यान कभी केंद्रित नहीं होता, वर्तमान सत्ता से क़ितनी उम्मीदें थीं जनता को, लेकिन क्या हुआ, सरकार ने अपने वादे पूरे किये? यह छोटी-छोटी बुनियादी ज़रूरतें तो पूरी की नहीं, और मेहंगी दँवाईयों की सब्सिडी भी ख़त्म कर दी।

बुलेट ट्रेन का ही तोहफा मिलेगा क्या इन पाँच सालों में? शिक्षा- स्वास्थ्य, बेरोजगारी, प्रदूषण, ग़रीबी जैसी समस्याओं पर वर्तमान सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता है? बीफ, कश्मीर, पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दे मिडिया में उछलते रहते हैं, सरकार न तो ग़रीब मज़दूर के बारे में सोच रही है, और न ही दलितों- मुसलमानों, स्त्रियों के बारे में कुछ कर रही है। फिर कौन खुश हैं, संतुष्ट हैं इस सरकार से। हक़ीक़त यह है कि न कोई खुश हैं, और न ही कोई सुरक्षित हैं।

पिछले साठ सालों में कॉग्रेस ने राज किया, उसने भी इस बुनियादी ढांचे में कोई सुधार नहीं किया, और आज विपक्ष में बैठकर चिल्ला रही है। और बीजेपी पिछले साठ सालों से विपक्ष में रहकर चिल्ला रही थी, आज सत्ता में है। यह हिन्दुस्तान की बहुत बदकिस्मती है कि, उसके पास बड़े राष्ट्रीय स्तर की दो पार्टियां हैं कॉग्रेस और बीजेपी, यही सत्तापक्ष और विपक्ष में रहती हैं, और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालती रहती हैं। और तीसरा विकल्प मज़बूत नहीं होता।

-मेहजबीं

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

परिहार प्रखणड के दो डीलरों का लाइसेंस रद्द

परिहार  (सीतामढी )।परिहार प्रखणड के परिहार उत्तरी पंचायत के दो डीलरों का लाइसेंस आपूर्ति विभाग के अपर सचिव के पत्र के आलोक में अनुमंडल पदाधिकारी सीतामढी सदर ने रद्द कर दिया है।
         माननीय आपूर्ति मंत्री मदन सहनी को परिहार भ्रमण के दौरान उपभोक्ताओं ने जविप्रवि जितेन्द्र पांडेय और फैक्स परिहार उत्तरी के विरुद्ध शिकायत की थी। माननीय मंत्री के 26 जून 16 के परिहार भ्रमण के दौरान लोगों ने कहा था कि विक्रेताओं के द्वारा प्रत्येक माह राशन और किराशन नही दिया जाता है विक्रेताओं के द्वारा निर्धारित मूल्यों से अधिक राशि की वसूली की जाती है।

बुधवार, 21 सितंबर 2016

बाढ़ सहाय मद के खाद्यान्न के कालाबाजार की आशंका

परिहार (सीतामढी )।परिहार अंचल   कार्यालय के पत्रांक-329 दिनांक-17.7.2010 पत्र के आलोक में प्रखंड के नौ डीलरों को बाढ़ सहाय्य मद के खाद्यान्न का भंडारण हेतु आदेश दिया गया आदेश के अनुसार सभी नौ डीलरों नें 1900 क्विटल खाद्यान्न का उठाव कर खाद्यान्न का भंडारण कर लीया।     
अपर समाहर्त्ता (आ० प्र०)के आदेश ज्ञापांक -866/आ०प्र० दिनांक-31.12.10 दवा्रा निगत आदेश के आलोक मे बाढ़ राहत हेतु उपावंटित भंडारित खाद्यान्न जमा था ।परिहार अंचल कार्यालय के ज्ञापांक-22 दिनांक-07.01.2011का आदेश पत्र निकाला गया कि अविलम्ब राज्य खाद्यान्न निगम सीतामढ़ी मे जमा कर प्राप्ति रसीद कार्यालय मे जमा करे ताकी जिला पदाधिकारी को मामले से अवगत कराया जा सके ।
किस डीलर के यहा है भंडारित खाद्यान्न 1.गणेश साह,बथुआरा- 100क्वि गेहु 100क्वि चावल। 2.जय नारायण साह,भेड़रहिया-100क्वि गेहु.100क्वि चावल। 3.अब्दुल हई परसा-100क्वि चावल।4.इजहार अहमद लहुरीया-100क्वि गेहु.100क्वि चावल। 5.मथुरा राय बबुरवन-100क्वि गेहु .100क्वि चावल। 6.संजय कुमार राउत महादेवपट्टी-100क्वि गेहु.100क्वि चावल। 7.राकेश प्रसाद यादव जगदर-100क्वि गेहु.100क्वि चावल।8.जितेन्द्र कुमार परिहार उत्तरी-200क्वि गेहु.200क्वि चावल।9.राम चंद्र साह बाया-100क्वि गेहु.100क्वि चावल का उठाव किया था। जिसमे से दो डीलर संजय कुमार राउत महादेवपट्टी  व रामचंद्र साह बाया खाद्यान्न जमा कराया शेष सात डीलर अब भी खाद्यान्न निगल चुके है । जबकी दोबारा अंचल कार्यालय के पत्रांक-462 दिनांक-10.05.2013 को सभी डीलर को पत्र भेजा गया 24घंटा के अंदर जवाब देने को कहा लेकिन कोई डीलर पत्र का सुधी लेना मोनासीब नही समझा और आज तक 1500क्वि खाद्यान्न जमा नही हो सका। श्रीमान अनुमंडल पदाधिकारी के कार्यालय मे डीलर राम दरेश राय ने दिनांक-05.05.2015को 1500क्वि खाद्यान्न के संबंध मे आवेदन दिया था ।

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

शिवहर के प्रहलाद:-श्रीरघुनाथ झा जी

राम बाबू सिंह
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"मित्रता अल्लाह की ओर से उन्हें अनमोल भेंट है।बड़े खुश नसीव है वो,जिन्हें नसीव से वे दोस्त मिलें।आपसी सामन्जस्य से मित्रों में परस्पर फिक्र करने  की असीम प्रवृति ,हाल जानने की बेचैनी तथा बिना माँगे सहयोग की ललक ही, सच्ची मित्रता है,जो आदरणीय झा जी के जीवन की सार्थकता को सिद्ध करता है।

होलिका दहन में शिवहर से दूष्ट बिचारों के विनाशक एंव होलिका भष्म के साथ होली के लाल गूलाल से हर्षोउल्लास के वाताबरण में विकास के अग्रदूत के रूप में स्व० पंडित जिया लाल झा जी के आंगन में पुज्यनिया माँते स्व० कलावती जी के गर्भगृह से अवतरित आदरणीय श्री रधुनाथ झा जी के समर्पित प्रयास एंव कुर्बानियों से ही शिवहर अनुमंण्डल फिर जिला बन कर विकसित बनने  हेतु उद्धारक के प्रतिक्षा में है ?
           शिवहर को अनुमंडल बनाने के शर्त-माँग पर डा०जग्रन्नाथ मिश्र जी के नेतृत्व में गठित बिहार सरकार के मंत्रीमंडल से त्यागपत्र सौंप कर नीजि स्वार्थ से उपर"शिवहर का विकास"उनके जीवन का महानलक्ष्य "साध्य एंव साधन" रहा! कालान्तर में जिला बनाना, प्रशासन को जनता के निकट पहूँचाकर सुगम न्याय हेतु प्रखण्डों का बिभाजन एंव सृजन,नवसृजित पंचायतों का गठन,सीतामढ़ी जिला परिषद अध्यक्ष के नाते ग्रामीण यूनानी चिकित्सालयों को पून:जीवन के साथ जिला परिषद तथा ग्रामीण सड़कों का चयन करा कर P.W.D.& R.E.O में समायोजन से सुदृढ़ी करण कर वे शिबहर के समावेशी विकास का मार्ग प्रसस्त किये !
*शिक्षा के प्रसार हेतु प्रत्येक  प्रखण्डों में अपने राजनीतिक  मित्रों, शुभचिंतकों से दान में भूमि एंव सहयोगियों के सहयोग से भवन निर्माण करा कर उच्चबिधालय स्थापित करायें ! वे स्वत:भी अपने माता-पिता के नाम पर नीजी भूमि बदलैन या क्रय करके अम्बा में कलावती-जियालाल उच्च बिधालय बनाये।जिसमें केन्द्रीय बिधालय भी आज संचालित है! जो जिला का गैरव बढ़ा रहा है।
*बिहार सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री के दायित्व मिलते ही उनके प्रयास से प्राथमिक,माध्यमिक,उच्चबिधालयों के सृजन-सुदृढ़ी करण एंव समायोजन से दूरदराज के गाँव-गवई मेंअभिभावकों के साथ बच्चों में पढ़ाने-पढ़ने की प्रवृति स्वत:जागृत हो गयी। शिवहर जिला मुख्यालय में झा जीअपने मित्र स्व० जगदीश नन्दन सिंह जी के सौजन्य से भूमि तथा भवन की व्यबस्था कर प्रोजेक्ट कन्या उच्च बिधालय स्थापित कर तथा पठन-पाठन प्रारंम्भ करा कर राज्य सरकार से प्रस्वीकृति प्रदान कराये जो वालिका उच्च बिधालय कालान्तर में इन्टर काँलेज के रूप में बच्चियों में शिक्षा का व्यापक आधार सिद्ध हो रहा है !आज सक्षम नेतृत्व के अभाव में शिबहर में अभी भी डिग्री काँलेज नहीं है !
*स्वास्थ्य मंत्री के नाते रेफरल अस्पताल,अनुमंण्डल चिकित्सालय, अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र तथा उप केन्द्रों का सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सृजन कर सुगम चिकित्सा का मार्ग प्रसस्त किये !शासन-प्रशासन की अदूरदर्शिता से आज भी अम्बाकला के निर्माणाधिन रेफरल अस्पताल में लाखों की लागत तथा कड़ोड़ों की भूमि उदेश्य बिहीन हो गयी है ! सक्षम नेतृत्व के अभाव में शिबहर जिला मुख्यालय में झा जी के मित्र स्व०सीता राम बाबू,फतहपुर के सौजन्य से निर्मित आदर्श जिला चिकित्सालय भी उद्धारक /उदधाटनकर्ता के प्रतिक्षा में कराह रहा है !
*स्वच्छ पेजल आपूर्ती योजना हेतु निर्मित या अर्द्धनिर्मित कई नौ लखा पानी टंकी मिनार बन कर शोभा बढ़ा रहा है ! ग्रामीण स्तर तक स्वच्छ पेजल आपूर्ती की यह योजना  सक्षम नेतृत्व के अभाव में भूमि नहीं मिलने के कारण शिवहर जिला के ग्रामीण पंचायतों तक नहीं पहूँच पा रहा है !
*जेल निर्माण के साथ ब्यबहार न्यायालय स्थापित करा कर आम जनों के समीप न्यायालय तो स्थापित हो गया! परन्तु न्यायधिशों ,अधिवक्ताओं केआवासीय समुचित व्यबस्था उनकें बच्चों  के पठन पाठन की सुबिधा का अभाव,विकसित शहरीकरण नहीं होने के कारण सक्षम पदाधिकारी यहाँ नहीं रह पाते !
*औधोगिक एरिया के लिए भूमि का चयन,अधिग्रहण तो दूर सांसद, बिधायक किसी नेता की सोच भी स्वरोजगार या रोजगार सृजन हेतु नहीं बन सका है!अपने लिए भी मेकैनिकल ईटभट्टा का ही उधोग लगा रखें है।जिसमें रोजगार सृजन का क्षरण है।
*आदरणीय झा जी के प्रयास से शिवहर को रेलवे से जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना को मुर्त रूप देना तो दूर बिहार राज्य पथ परिबहन निगम की बसों से भी शिवहर से पटना को नहीं जोड़ी जा सकी है !
*संचार क्रान्तिके क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा शिवहर जिला के प्रत्येक पंचायतों को बाण्ड बौक्स सेवा से जोड़ दिया गया है।परन्तु समाज सेवी राजनेताओं में सक्षम नेतृत्व के अभाव से औप्टिकल फाईवर ही पंचायतों में नहीं पहूँच पाया है।गाँव की सुधी लेने बाले निर्बाचित सत्ताधारी दल के जन प्रतिनिधियों में इक्षा शक्ति, एंव प्रभाव शाली व्यक्तित्व का घोर अभाव खटकता है ?
*आदरणीय श्री रधुनाथ झा जीअम्बाकला बहूधंधि सहकारी सहयोग समिति लि०के सचिव से बिहार राज्य सहकारी गृह निर्माण सहयोग संघ लि० एंव बिहार राज्य सहकारी उपभोक्ता भंण्डार संघ लि० में निर्वाचित निदेशक के रूप में नेतृत्व प्राप्त कर विदेशों में सहकारी आन्दोलन का प्रतिनिधित्व भी किये।मुखिया या बिधायक बनने पर भी पैदल ग्रामीण भ्रमण में जाते थे! वे गाँव की समस्यायों को स्वत: संकलित कर सम्बन्धित कार्यालय में पदाधिकारियों से समाधान कराने का प्रयास करते थे! बागमती नदी की बिभिषिका से त्रस्त सड़क बिहीन शिवहर चारोतरफ से बाढ़ से घिरा रहता था।डूब्बा घाट पर नाव एक मात्र आवागमन का साधन हुआ करता था ! अनेकों नाव डूबने की दूर्घटनायों में एक-बार में18 व्यक्तियों की मृत्यु बागमती नदी के काल की गाल में हो जा रही थी ! फिर भी समाज सेबा की भावना से झा जी ढ़ेग पुल के नीचे से नाव पर सबारी कर अदौरी कटाब देखते ,बसबरिया में रात्री विश्राम कर पंचायतों का भ्रमण कर ज्वलन्त समस्यायों को गाँव में सकंलित करते ! पून: चकफतेहा ,बराही खैड़ापहाड़ी, दोस्तिया ,कटैया,से पुरनहिया पड़ाब में इलाके के आमलोगों, मुखिया, सरपंच तथा शुभचिंतकों के साथ क्षेत्रिए विषयों  की समीक्षा कर ज्वलंन्त समस्यायों का संकलन कर समाधान का प्रयास करते। पिपराही प्रखण्ड मुख्यालय में पदाधिकारियों के साथ बैठकों में जाने से पहले वे स्थानीय लोगों से बिमर्ष कर ज्वलंत संकलित समस्यों का संकलन कर समाधान कराते !
*अगला पड़ाब अम्बा कोठी स्व०नग नारायण कुँवर जी के यहाँ होता तथा पैदल या नाव से गाँव का भ्रमण करते चमनपुर या शिवहर में पड़ाब होता ! शिवहर भ्रमण के क्रम में भी वैसे ही दो- तीन दिनों के पड़ाब में सभी गाँव का भ्रमण कर संकलित समस्यायों के समाधान करने का प्रयास करते रहते थे !  यही लगाव क्षेत्र की जनता से बनाये रखने के बल पर आदरणीय झा जी1977 के काँग्रेस बिरोधी लहर में तो विजयी रहे ही बल्कि काँग्रेस दल की राजनीतिक प्रतिद्वन्दिता में तत्कालिन  मुख्य मंत्री स्व० चन्द्र शेखर सिंह द्वारा टिकट काटने पर शिवहर की जनता ने नारा दिया "हाथ नहीं ,रघुनाथ चाहिए " तथा उन्हें विजयश्री दिलाकर बिहार बिधान सभा में भेज दिया !सदैब कार्यकर्ताओं से जुड़े रहने का ही प्रतिफल मिला वे"अम्बाओझा टोला के फर्स से राष्ट्रीय राजनीति में शीर्ष "पर पहूँचे। कालान्तर  में  वे गोपलगंज एंव वेतिया लोक सभा क्षेत्रों से क्रमश:सांसद तथा भारत सरकार में भारी उधोग राज्य मंत्री भी बने परन्तु जननी- जन्म भूमि होने के नाते शिवहर के विकास हेतु सदैव प्रयत्नशील रहे ! कुमार जी ,शिवहर में इनका अभाव खटकता है ,प्रयास करें !
*अनुकरणीय:-"मित्रता अल्लाह की ओर से उन्हें अनमोल भेंट है।वो बड़े खुश नसीव है,जिन्हें नसीव से वे दोस्त मिले।आपसी समान्जस्य से मित्रों में  परस्पर फिक्र करने  की असीम  प्रवृति, हाल जानने की बेचैनी तथा बीन माँगे सहयोग की  ललक ही सच्ची  मित्रता  है, जो आदरणीय  झा  जी के जीवन  की  सार्थकता  को  सिद्ध करता है।"
आदरणीय श्री रघुनाथ झा जी सभी जाति,धर्म के समाज सेवी "कार्यकर्ताओं के प्रति समर्पित राजनेता" के रूप में अनुकरणीय

अप्रतिम हस्ताक्षर"है!
Cooperative society for People.
रामबाबू सिंह
निदेशक,
बिस्कोमान पटना।
अभिराजपुर बैरिया।
शिवहर।
सीतामढ़ी(बिहार)

हम जिनको इंसान बनाते रहते हैं

क़ासिम ख़ुरशीद
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हम जिनको  इंसान  बनाते  रहते हैं
वो  दिल  को  वीरान  बनाते  रहते हैं
ये दुनिया तो प्यार से कितनी खiली है
हम  हैं   कि  शैतान   बनाते   रहते  हैं
जिन  को  तू  ने  गुमनामी  में छोड़ा  है
अक्सर  वो   सुल्तान  बनाते  रहते  हैं
जो  पहले   सीने  पे    खंजऱ  सहते  हैं
वो  जीना   आसान   बनाते    रहते  हैं
किलकारी  का  क़त्ल  यहाँ पर होता है
क्यों  घर  को  सुनसान  बनाते  रहते  हैं
फुटपाथों पर  जिन की किस्मत सोती है
घर   वो    आलीशान   बनाते   रहते   हैं
लंबे   सफ़र   पे  ख़ाली  हाथ  जो होते  हैं
वो   घर   के   सामान  बनाते   रहते    हैं
अंदर  अंदर   कोई     तेलावत    करता   है
हम   दिल   को क़ुर'आन   बनाते रहते  हैं
अब क़ासिम पर कैफ़ो-कम का  आलम है
वो   ग़म   का   दीवान    बनाते   रहते   हैं

जवानों के शहादत पर सियासत

मेहजबीं
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कल भारत के जवान शहीद हुए कुछ लोग इस घटना को भी भुना रहे हैं, नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, किसके दिल में क्या है क्या नहीं है यह जानना उनका जाती काम बन गया है, और नफरत ने अंधा कर दिया है, सही ग़लत में फ़र्क़ भी नहीं कर सकते हैं, कितनी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं और अचानक से लोग मौत के मुँह में चले जाते हैं, ऐसी ही दु:ख की घड़ियों में कुछ लोग नया साल धूमधाम से मनाते हैं, होली - दिवाली, ईद, शादी-ब्याह सब सेलीब्रेट करते हैं,  तो क्या दु:ख की घड़ी में कुछ नौजवान जो इन्जॉय करते हैं हम उन्हें देशद्रोही घोषित कर दें  ?

          आज के टाइम में एक तो किसी को किसी से संवेदना नहीं है, अब व्यक्ति समाजवादी कम व्यक्तिवादी ज्यादा हो गए हैं, आज हर शख़्स अपनी जाती जिंदगी के हालातों में बंधा है, कुछ लोगों की तो संवेदना समाप्त हो ही गई है, उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता, किसी से उन्हें लगाव नहीं होता, लेकिन अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अच्छे इंसान हैं, उनके दिल दिमाग़ सुलझे हुए हैं, संवेदना भी है उनके पास, लेकिन अपनी उलझनों में उलझे हुए हैं चाहकर भी कुछ किसी के लिए न कह पाते हैं न कर पाते हैं, तो क्या ऐसे लोगों को हम देशद्रोही ज़ल्लाद घोषित कर दें? किसने दिया है किसी को यह हक़ के कोई भी किसी को भी अपनी नफरत के आइने में जांचें, और देशद्रोही कह दे? इसी समाज में एक ही मोहल्ले में मौत हो जाती है और उस घर में मातम छा जाता है, और उसी दिन उसी मोहल्ले में किसी घर में शादी होती है और वहां लोग इन्जॉय करते हैं, डिज़े बजाते हैं, कूदते हैं, नाचते हैं, पटाखे फोड़ते है, जब्कि वह लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे ही मोहल्ले के एक घर में मौत हो गई है, तो क्या हम उन नादान संवेदना रहित लोगों को जाकर मार दें? देशद्रोही घोषित कर दें? इस तरह की असंवेदनशीलता तो लोगों में पैदा होती ही जा रही है, रही सही कसर सोशल मीडिया ने पुरी कर दी है, लोग अब अपनी संवेदना फेसबुक और वटसऐप पर ही व्यक्त करते हैं, लाइक, शेयर, कमेन्ट्स के द्वारा.... कल शहीद हुए जवानों पर भी लाखों लोगों ने अपनी संवेदना इसी तरह फेसबुक- वटसऐप के द्वारा व्यक्त की है, और आगे भी इसी तरह करेंगे क्योंकि अब वक्त आगे ही जाएगा लौटकर पिछे तो जाने से रहा, कल जिन - जिन भारतीयों ने जवानों के शहीद होने की ख़बर को शेयर किया, लाईक किया, कमेन्ट्स लिखे, फेसबुक वटसऐप पर श्रधांजलि व्यक्त की, बस वही सच्चे देशभक्त हैं, बाक़ी तो गद्दार हैं, देशद्रोही हैं, जिन भारतीयों के घरों में शादियाँ थी और उन्होंने अपनी शादियों में इन्जॉय किया, वटसऐप और फेसबुक पर शहीदों को श्रधांजलि नहीं दी, वो भी देशद्रोही हैं, गद्दार हैं, मार देना चाहिए उन्हें, आज की तारीख़ में हर शख़्स जज बन गया है, किसी को भी अपने नज़रिये के पैमाने में तोलेगा और देशद्रोही घोषित करेगा और मार देगा, देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटने वालों की बाढ़ आ गई है, अगर किसी साहित्यकार, लेखक, पत्रकार ने उनके नज़रिये के मुताबिक नहीं सोचा, नहीं लिखा तो वह गद्दार है, देशद्रोही है..... लिखने वाले भी तो इंसान होते हैं, उनकी जाती परेशानियां होती हैं, लगातार लिखते-लिखते अगर कभी-कभी वो लिखना कुछ दिनों, हफ्तों, महिनों के लिए बंद कर दें, अपने कुछ व्यक्तिगत कारणों से तो क्या उन्हें शक़ की नज़र से देखने लगे? कि फलां फलां विषयों पर लिखा, आज कुछ विषयों पर नहीं लिखा, तो वो देशद्रोही है, गद्दार है.... कल शहीद जवानों की घटना पर अगर कोई साहित्यकार, पत्रकार, लेखक या कोई आम आदमी किसी व्यक्तिगत कारणों से नहीं लिख सका टिप्पणी कर सका तो क्या उसकी नियत पर हम शक करने लगेंगे? या फिर किसी आम आदमी ने किसी बीमार ने डिप्रेशन के मरीज़ ने थोड़ा सा इन्जॉय कर लिया, क्योंकि उसका डॉ उसे खुश रहने के लिए फोर्स करता है, तरह- तरह की ऐक्टिविटी में इन्वॉल्व होने के लिए सलाह देता है, और कोई अपनी ऐक्टिविटी के द्वारा इन्जॉय कर लेता है तो हम उसे देशद्रोही कह देंगे? उसे लताड़ेंगे?

अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का सबका नज़रिया अलग- अलग होता है, कोई अपनी खुशी ग़म को ज़ाहिर कर देता है, बता कर, लिख कर, कोई नहीं ज़ाहिर करता है... नॉर्मल रहता है, कुछ भी व्यक्त नहीं करता, तो क्या अब ऐसे व्यक्ति को हम जांचेंगे? उसकी आलोचना करेंगे? क्या मालूम की उस व्यक्ति को अच्छी बुरी घटनाओं पर हमसे भी ज्यादा दु:ख होता हो  खुशी होती हो.... और वो ज़ाहिर नहीं करता, लेकिन कुछ लोगों को तो जन्मसिद्ध अधिकार है लोगों की निंदा करने का, और नियतों पर शक़ करने का, और आजकल ये फेसबुक और वटसऐप तो ऐसी बलां हैं कि भाई अगर कोई फेसबुक वटसऐप पर है तो, वहां हाज़िरी देनी ज़रूरी है, और अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करना भी ज़रूरी है, नहीं तो कुछ लोग वाट लगाने से बाज़ नहीं आते, व्याध की तरह ज़ाल बिछाकर बैठे रहते हैं, जैसे ही कोई फेसबुक वटसऐप के नियमों का पालन न करे, इनके मन मुताबिक अभिव्यक्त न करे, इनके मन मुताबिक पोस्ट न शेयर करे, बस हमला कर देंगे, देशद्रोही का सर्टिफिकेट थमा देंगे, जो लोग कल शहीदों की घटना पर संवेदनशील होने का ढोंग कर रहे हैं, दूसरों को देशद्रोही के सर्टिफिकेट बांट रहे हैं, उन्होंने अपनी जाती जिंदगी से जुड़े कामों को तर्क़ (ऐवॉइड ) किया हो या न किया हो, तीनों वक्त की रोटी छक कर खाई हो, मॉर्निंग वॉक किया हो, खेलकूद, फुटबाल, वालीवॉल, क्रिकेट, ताश, टेनिस, गिट्टे, कंच्चे, लट्टू खेले हों, फिल्में- नाटक देंखे हों... इसके बावज़ूद दूसरों पर टिप्पणी ज़रूर करेंगे, आजकल दो चेहरे वाले और फेसबुकिया- वटसऐपया संवेदनशील व्यक्तियों की टिप्पणियों से ईश्वर रक्षा करे, यह तो सबसे ज्यादा ख़तरनाक हैं, विदेशियों से भी ज्यादा,

सत्ता में कभी कॉग्रेस रहेगी और कभी बीजेपी, कोई गद्दी पर चढ़ेगा और कोई उतरेगा, कुर्सी कभी किसी एक की न थी और न कभी होगी, यह बात कॉग्रेस बीजेपी समर्थकों को क्यों समझ में नहीं आती? किसी राजनीतिक पार्टी को समर्थन क्या हम लोग आपस में नफरत करके ही कर सकते हैं? अपने जाती मुफाद के लिए तो अंदरूनी पर्दे के पीछे से कभी-कभी राजनीतिक दल भी, आपस में हाथ मिला लेते हैं, तो फिर हम अवाम, आम आदमी क्यों कॉग्रेस- बीजेपी समाजवादी, बहुजनसमाजवादी, पार्टियों के चक्कर में आपस में नफरत करते हैं? एक-दूसरे पर शक़ करते हैं? कल की शहीदों की शहादत पर एकदूसरे पर उंगली न उठाएं, आपसी भाईचारे को न ख़राब करें, दोषी है हमारी बीजेपी- कॉग्रेस की आती - जाती सरकारें, जो पाकिस्तान का कुछ नहीं करती, अपने जाती मुफाद के लिए तो पाकिस्तान और भारत की सरकारें आपस में गले मिलती हैं, हाथ मिलाती हैं, दावतें उड़ाती हैं, अभी कुछ दिन बाद ही मोदी जी और नवाजशरीफ जी गले मिल लेंगे, और हमें आपस में लड़ा देंगे, और ऐसे नेताओं के लिए जो लोग आपस में लड़ते हैं, बेवकूफ हैं मैं सिर्फ मोदी जी नवाजशरीफ के लिए नहीं कह रही, पिछले साठ सालों में आई गई सरकारों के संदर्भ में कह रही हूँ, हमारे जवान ऐसे ही शहीद होते रहेंगे, और यह पार्टियां उनकी लाशों पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेक़ती रहेंगीं..... आम आदमी,मज़दूर, ग़रीब लोग देशभक्ति के सर्टीफिकेट बांटने का काम न करें, मुट्ठी में नमक लेकर न घूमे, यह काम नेताओं का है,और उन्हीं पर शोभा देता है ......

मेहजबीं

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